budget 1991 : भारत की अर्थव्यवस्था के इतिहास में 1991 एक ऐसा वर्ष था, जब देश गहरे आर्थिक संकट में डूबा हुआ था। सरकार के पास इतने भी संसाधन नहीं थे कि वह अगले दो हफ्तों तक आवश्यक तेल, खाने-पीने की चीजें और अन्य जरूरी वस्तुएं विदेश से खरीद सके। देश पर इतना कर्ज हो चुका था कि उसे चुकाने के लिए सोना तक गिरवी रखना पड़ा। लाइसेंस राज, लालफीताशाही और व्यापक भ्रष्टाचार ने व्यापार और उद्योग को बुरी तरह जकड़ रखा था।
इसी दौरान, वैश्विक परिदृश्य भी तेजी से बदल रहा था—सोवियत संघ का पतन हो चुका था और वैश्वीकरण का दौर शुरू हो रहा था, लेकिन भारत इन परिवर्तनों से अछूता था। ऐसे संकट के समय, जब पी.वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने, उन्होंने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया—डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया। मनमोहन सिंह कोई साधारण नेता नहीं थे, बल्कि एक कुशल अर्थशास्त्री थे, जिनका अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ गहरा अनुभव था।
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1991 का ऐतिहासिक बजट और एलपीजी सुधार
डॉ. मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को जो बजट पेश किया, वह केवल सरकारी खजाने को भरने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव को बदलने के लिए था। यह बजट तीन प्रमुख आर्थिक सुधारों के लिए जाना जाता है, जिसे एलपीजी सुधार (LPG Reforms) कहा जाता है:
लिबरलाइज़ेशन (Liberalization) – उदारीकरण (budget 1991)
सरकार ने लाइसेंस राज की बेड़ियों को तोड़ दिया।
उद्योगों को स्थापित करने और व्यापार करने की प्रक्रिया सरल बना दी गई।
कई क्षेत्रों में सरकारी मंजूरी की बाध्यता समाप्त कर दी गई।
प्राइवेटाइज़ेशन (Privatization) – निजीकरण
घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों में निजी निवेश को बढ़ावा दिया गया।
टेलीकॉम, एविएशन और अन्य क्षेत्रों में निजी कंपनियों को प्रवेश की अनुमति दी गई।
एयर इंडिया और अन्य सरकारी कंपनियों में निजी पूंजी को आमंत्रित किया गया।
ग्लोबलाइज़ेशन (Globalization) – वैश्वीकरण
भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाज़ार के लिए खोल दिया गया।
विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश की अनुमति दी गई, हालांकि उन्हें भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी करनी थी।
विदेशी वस्तुओं के आयात पर लगी कई पाबंदियां हटा दी गईं।
सुधारों का प्रभाव
पहले, यदि किसी भारतीय कंपनी को नई कार बनानी होती, तो उसे सरकार से कई मंजूरियां लेनी पड़ती थीं, जिनमें सालों लग जाते थे। लेकिन सुधारों के बाद, यह प्रक्रिया सरल हो गई।
पहले, आम नागरिक के लिए कोका-कोला, पेप्सी जैसे ब्रांड्स खरीदना संभव नहीं था, लेकिन 1991 के बाद ये कंपनियां भारत में वापस आ गईं।
फ़ोन कनेक्शन, गैस सिलिंडर, स्कूटर जैसी बुनियादी चीजों के लिए लंबी कतारें लगानी पड़ती थीं, लेकिन इन सुधारों के बाद ये चीजें आसानी से उपलब्ध होने लगीं।
विदेशी निवेश के कारण लाखों नई नौकरियां पैदा हुईं, और भारतीय कंपनियां जैसे इंफोसिस, टाटा आदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने लगीं।
आलोचना और चुनौतियां
हालांकि, इन सुधारों को लेकर तीखी आलोचना भी हुई।
खाद्य पदार्थों, पेट्रोल और एलपीजी के दामों में वृद्धि से जनता को असुविधा हुई।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि ये फैसले विदेशी दबाव में लिए गए थे।
यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के भीतर भी इस पर मतभेद थे।
लेकिन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने इन आलोचनाओं के बावजूद अपने फैसलों पर दृढ़ता दिखाई। अपने बजट भाषण में डॉ. मनमोहन सिंह ने फ्रांसीसी लेखक विक्टर ह्यूगो के प्रसिद्ध उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा था—
“कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो।“
1991 से आज तक का सफर
1991 में भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 270 बिलियन डॉलर की थी, लेकिन आज यह 3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की हो चुकी है और भारत दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।
1991 का बजट सिर्फ एक आर्थिक सुधार नहीं था, बल्कि यह भारत की नई शुरुआत थी, जिसने देश को वैश्विक मंच पर स्थापित किया।