महेश शर्मा(वरिष्ठ पत्रकार) : बांग्लादेश की सेना जनरल वकार उज़ ज़मान ने जल्द ही अंतरिम सरकार देने का आश्वासन दिया है। वहां की अगली सरकार भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों का भविष्य तय करेगी। भारत भी अपनी एक्ट ईस्ट पालिसी के लिए बांग्लादेश को मुफीद मानता है। बीते कोई 50 से अधिक वर्षों से दोनों देशों के बीच संबंध हैं। यही नहीं पिछले साल नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। बहुत
तवज्जो दी थी। लेकिन अब शेख हसीना का प्रधानमंत्री ना रहना भारत के लिए कई मुश्किलें पैदा कर सकता है। हसीना के नेतृत्व वाली बांग्लादेश अवामी लीग सेकुलर, लिबरल, प्रोग्रेसिव सोच की पार्टी है जो भारत की विदेश नीति को सूट करती है। दूसरी तरफ खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी है जिसे इस्लाम की तरफ झुकाव वाली पार्टी कहा जाता है। उसके प्रो-पाकिस्तानी होने से चीन का प्रभाव बढ़ सकता है। वजह चीन और पाकिस्तान के गहरे संबन्ध। ऐसे में यदि खालिदा ज़िया की पार्टी सत्ता में आती है तो लाज़िम है कि चीन इसका लाभ उठा सकता है। तो भारत-बांग्लादेश के बीच व्यापारिक रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। दक्षिण एशियाई देशों में चीन का दखल बढ़ेगा और वह अपनी लाल आंखें तरेर सकता है। इसी तरह दोनों देशों के बीच सड़क, बिजली, बंदरगाह, एचएसडी (हाई स्पीड डीजल) पाइप लाइन समेत तमाम प्रोजेक्टों पर असर पड़ सकता है। हसीना सरकार चीन और भारत दोनों को बैलेंस करके चलती थी। खालिदा के आने पर दोनों के बीच चल रहे बिलियन्स डॉलर का व्यापार भी प्रभावित हो सकता है। सैन्य अधिकारी जनरल वकार अपनी बात पर कायम रहते हुए सभी पक्षों से वार्ता करके हल निकालें। बांग्लादेश में चुनाव की संभावना तलाशें। तभी कुछ बात बन सकती। यदि सैन्य सत्ता रही तो देखना होगा उसका मिजाज किस तरफ का है। खालिदा ज़िया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सत्ता में न आये तभी भारत के लिए हितकर होगा। ये तख्ता पलट भारत सरकार को विदेश नीति पर सोचने की मन:स्थिति पर ला सकता है।