Bihar Politics: बिहार की सियासत में आजकल हर कोई अपनी गुणा-गणित बिठाने में जुटा हुआ है। चाहे जेडीयू और आरजेडी हो या फिर विपक्षी पार्टी बीजेपी ही क्यों न हो। इन सबके बीच उपेंद्र कुशवाहा जरूर नीतीश कुमार की जेडीयू में खेला करने को लेकर मोर्चे पर आ गए हैं। ये बात पार्टी नेतृत्व भी जानती है फिर भी उन पर एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा है?
News Jungal Politcal desk: बिहार की बदलती राजनीतिक स्थिति में समाजवादी नेता उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल दूल्हा बने नजर आते हैं। मौजूदा स्थिति में वे राजनीति की वह धुरी बन चुके हैं जिसके आस-पास महागठबंधन और एनडीए दोनों ही चक्कर काट रहे हैं। अपने-अपने अंदाज में दोनों ही गठबंधन कुशवाहा जाति के वोट बैंक की राजनीति को साधना चाहते हैं। आरजेडी किसी भी कीमत में कुशवाहा वोट को बिखरने नहीं देना चाह रही है। उधर, बीजेपी कुशवाहा वोट का इंटेक्ट हासिल करना चाहती है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति में जेडीयू है जिसकी हालत आगे कुंआ और पीछे खाई वाली दिख रही है।
क्या चाहता है जेडीयू का नेतृत्व
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा को दंत विहीन कर छोड़ देना चाहते हैं। यही वजह है कि जैसे ही कुशवाहा आर-पार के मूड में आए जेडीयू मुखिया ने तुरंत दो टूक जवाब दे दिया। उन्होंने साफ कहा कि कुशवाहा अब जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष नहीं रहे हैं और न ही संगठन में किसी बड़े पद पर हैं। इसके पीछे नीतीश कुमार और ललन सिंह की मंशा यही है कि उपेंद्र ने जो नया फरमान जारी किया है उस पर पार्टी नेतृत्व का रवैया सख्त है। उन्हें पता है कि कुशवाहा को पावर लेस नहीं करेंगे तो भविष्य में जेडीयू को दो धड़े में बंटने से कोई रोक नहीं पाएगा।
इसलिए ललन सिंह ने संभाल ली है कमान
उपेंद्र कुशवाहा इस बार बिहार की राजनीति में एक बड़ा उफान लेकर आए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा को राजनीति का ठेंगा दिखाते हुए 19-20 फरवरी को राज्यभर के पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है। साथ ही पत्र लिखकर जेडीयू के सारे कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी दिया है कि नीतीश की आरजेडी से बहुत खास डील हुई है। जेडीयू के आरजेडी में विलय की कवायद से पार्टी का अस्तित्व खतरे में है।इसलिए जेडीयू कार्यकर्ता पार्टी को बचाने की पहल करें।
उपेंद्र को शहीद नहीं होने देगी जनता दला यूनाईटेड
उपेंद्र कुशवाहा ने तो वर्तमान राजनीति को ध्यान में रख कर अंतिम दांव चल दिया है, ऐसे में, जेडीयू नेतृत्व के पास अब उनकी चाल को शिथिल करने के लिए एक ही उपाय है कि इनपर कार्रवाई का डंडा चला कर शहीद करने से बेहतर है कि इन्हें उनके ही हाल पर छोड़ दिया जाए। जेडीयू नेतृत्व की मंशा यह है कि जैसे जॉर्ज फर्नांडिस को किनारे लगाया गया, जो हाल शरद यादव का किया गया, ठीक उसी रास्ते पर उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति का दम निकाल दिया जाए।
क्यों चुना कुशवाहा ने जेडीयू के समानांतर संचालन को
जेडीयू के भीतर जब जॉर्ज और शरद यादव को किनारे लगाया जा रहा होगा तो उपेंद्र कुशवाहा भी उस राजनीति के पार्ट एंड पार्सल होंगे। यही वजह है कि वे इन्कार के रास्ते पर चलकर यथा संभव जदयू से अपनी हिस्सेदारी लेकर ही अलग होंगे। यह तभी संभव होगा जब वे पार्टी के भीतर रहकर नीतीश और ललन सिंह से खार खाए नेता या वैसे नेता जो आरजेडी से गठबंधन के बाद नाराज हों, उन्हें लेकर निकलने की रणनीति की लड़ाई लड़ें। उपेंद्र कुशवाहा यह भी जानते हैं कि बीजेपी भी उनकी हिस्सेदारी को बेहतर अंजाम तभी देगी जब वे जदयू को तोड़ने में किसी तरह कामयाब होगी।
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