समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई होने वाली है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ बनाई है.
News Jungul Desk : सेम सेक्स मैरिज यानी समलैंगिक विवाह (Same Gender Marriage) को मान्यता मिले या नहीं, इस मामले की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पांच सदस्यीय बेंच मंगलवार को सुनवाई करेगी। केंद्र सरकार ने इस मामले में दाखिल याचिकाओं के औचित्य पर सवाल उठाया हैं। केंद्र सरकार (Central Government) ने अनुरोध किया है कि पहले इस बात पर सुनवाई होनी चाहिए कि ये याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं या नहीं। केंद्र सरकार ने रविवार को दाखिल अर्जी में कहा है कि ये याचिकाएं सामाजिक स्वीकार्यता के उद्देश्य से महज कुछ शहरी अभिजात्य विचारों को दिखाती हैं। वहीं बच्चों के अधिकारों के लिए कार्यरत केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के आयोग ने विरोधाभाषी रुख अपना लिया है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जहां इसका विरोध किया है, वहीं दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग इसके समर्थन में खड़ा हो गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud), जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली मंगलवार को इस मामले में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई करेंगे. इन याचिकाओं में कानून के तहत सेम सेक्स मेरिज को मान्यता देने की मांग करते हुए कहा गया है कि समलैंगिक रिश्ते रखने वालों को अपनी पसंद के मुताबिक विवाह करने का अधिकार मिलना चाहिए. केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में भी सेम सेक्स मेरिज को मान्यता देने का पुरजोर विरोध किया है ।
ऐसे रिश्तों में बच्चों को गोद देने से बड़ा खतरा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह के विदेशी अध्ययन हैं कि समलैंगिक लोगों ने जिन बच्चों को गोद लिया है, वो बच्चे सामाजिक और मनौवैज्ञानिक रूप से प्रभावित होते हैं. समलैंगिक रिश्तों में बच्चों को गोद देने का अधिकार देने से बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले पारंपरिक परिवार की तरह बच्चों की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते. जिसका सीधा असर बच्चे की परवरिश पर पड़ेगा ।
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