चंद्रयान-3 को इसरो आज साउथ पोल पर लैंड कराने का कोशिश करेगा.इस प्रयास पर पूरे देश के साथ दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नजर है.वह यदि इसमें कामयाब रहा तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश होगा.चंद्रयान 2 के क्रैश होने की घटना से इसरो के वैज्ञानिक निराश तो हुए थे लेकिन बिना समय गंवाए वे अगले मिशन की तैयारी में जुट गए. इस बार उनकी कोशिश पिछली चूकों को नहीं दोहराने की है.चंद्रयान-3 की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए इसरो ने इस बार विक्रम के डिजाइन और क्षमताओं में बदलाव किए हैं.
News jungal desk : मिशन चंद्रयान-3 के लिए बुधवार, 23 अगस्त बेहद महत्वपूर्ण और इतिहास रचने वाला साबित हो सकता है । चंद्रयान-3 को शाम करीब 25 किमी की ऊंचाई से साउथ पोल पर लैंड कराने का कोशिश की जाएगी । और इसरो के इस प्रयास पर पूरे देश के साथ दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नजर है । वह यदि विक्रम लैंडर को चांद के साउथ पोल पर उतारने में कामयाब रहा तो भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन जाएगा । हालांकि यह काम इतना आसान भी नहीं रहने वाला.इसकी वजह है साउथ पोल पर गहरे गड्ढों की मौजूदगी
साउथ पोल पर ये गड्ढे ही 2019 में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग की वजह बने थे.इसरो के इस महत्वाकांक्षी मिशन के तहत जब विक्रम लैंडर अपने तय प्रक्षेप पथ (Trajectory) से झुका तो सही तरीके से जमीन पर लैंड नहीं कर सका है । इसरो की योजना विक्रम लैंडर को साउथ पोल से करीब 600 किमी दूर चंद्रमा की समतल सतह पर उतारने की थी लेकिन टचडाउन के ठीक पहले लैंडर से संपर्क टूट गया विक्रम के चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद इसका,पृथ्वी पर मिशन नियंत्रण स्टेशन से संपर्क टूट गया था । और उस समय संपर्क टूटने की वजह सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी को माना गया था ।
वास्तव में सतह ऊबड़-खाबड़ होने के कारण किसी मैन एयरक्राफ्ट के बजाय लैंडर-रोवर को चांद पर उतारना ज्यादा कठिन है । यही कारण हैं कि कई बार नाकामी हाथ लगती है । चांद पर अब तक सात Manned मिशन चांद पर भेजे जा चुके हैं । सबसे पहले अमेरिका का अपोलो-11 एयरक्राफ्ट जुलाई 1969 में चांद पर उतरा था । नील आर्मस्ट्रांग चांद की सतह पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे । उनके साथ एडविन ऑल्ड्रिन भी थे। नवंबर 1969 में अपोलो-12 स्पेसक्राफ्ट से पीट कारनाड और एलेन बीन, फरवरी 1971 में अपोलो-14 स्पेसक्राफ्ट सेएलन शेपर्ड और एडग मिशेल, अगस्त 1971 में अपोलो-15 स्पेसक्राफ्ट से डेविड स्कॉट व जेम्स इरविन, अप्रैल 1972 में अपोलो-16 स्पेसक्राफ्ट से जेम्स यंग और चार्ल्स ड्यूक और दिसंबर 1972 में अपोलो-17 से हैरिसन शमिट और जीन सर्नन चांद पर उतर चुके हैं ।
चांद पर मैन लैंडिंग के इस अभियान के दौरान केवल अपोलो-13 को ही नाकामी हाथ लगी थी । इस स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग का तीसरा प्रयास चंद्रमा के रास्ते में एक ऑक्सीजन टैंक विस्फोट के कारण निरस्त करना पड़ा था । हालांकि अपोलो 13 का चालक दल इस बाधाओं के बावजूद सुरक्षित रूप से पृथ्वी वापस लौट आया था. ।
पिछली कमी से सीख लेकर चंद्रयान-3 में किए गए बदलाव
चंद्रयान 2 के क्रैश होने की घटना से इसरो के वैज्ञानिक निराश तो हुए लेकिन बिना समय गंवाए वे अगले मिशन की तैयारी में जुट गए. इस बार उनकी कोशिश पिछली चूकों को नहीं दोहराने की है.चंद्रयान-3 की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए इसरो ने इस बार विक्रम के डिजाइन और क्षमताओं में बदलाव किए हैं.
साउथ पोल पर लैंडिंग इसलिए है मुश्किल
दरअसल ऊबड़खाबड़ साउथ पोल पर जमीन असमतल है.बड़े-बड़े गड्ढे हैं जिसके कारण लैंडर की लैंडिंग आसन नहीं होती.साउथ पोल में अंधकार होने के कारण स्थितियां और मुश्किल हो जाती हैं, यहां पर तापमान -300 डिग्री फारेनहाइट या इससे भी नीचे जा सकता है.भूकंप के झटके यहां की परिस्थितियों को और मुश्किल बनाते हैं. इसरो ने चंद्रयान-3 में लगे कैमरे से चांद के ऐसे इलाके, जो पृथ्वी से नहीं दिखता,की फोटो शेयर की हैं. यह फोटो चंद्रयान के लैंडर हैजार्ड डिटेक्शन एंड एवॉयडेंस कैमरे (LHDAC) ने भेजी हैं जो लैंडर के लिए सेफ एरिया लोकट करने में मददगार रहेगा.
नॉर्थ पोल के मुकाबले साउथ पोल को इसलिए तरजीह
चंद्रयान-3 मिशन के लिए चांद के साउथ पोल को नॉर्थ पोल के मुकाबले तरजीह देने के पीछे खास वजह है.कुछ अंतरिक्ष विज्ञानियों का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ अधिक है. कुछ का कहना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव सौर ऊर्जा, भौतिक संसाधनों के मामले में उत्तरी ध्रुव से बेहतर है.1990 के दशक में चांद से जुड़े कई मिशन साउथ पोल पर केंद्रित थे.इसी कारण साउथ पोल को भविष्य के अभियानों में शामिल किया गया है.
अब तक अमेरिका, चीन और सोवियत संघ करा चुके लैंडिंग
मिशन चंद्रयान-3 अगर कामयाब रहा तो भारत चांद के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा. चांद के नार्थ पोल पर अब तक अमेरिका, रूस (तत्कालीन सोवियत संघ)और चीन सफल लैंडिंग कर चुके हैं.अमेरिकी मिशन अब तक 11 बार चांद पर लैंडिंग कर चुके हैं. रूस के आठ मिशन चांद पर 8 बार उतर चुके हैं जबकि चीन ने पहली बार वर्ष 2013 में चांगई-3 मिशन चांद पर उतारा था. रूस का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट (Russia Luna 25 Spacecraft) चांद के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला यान हो सकता था लेकिन दुर्भाग्यवश यह क्रैश हो गया और साउथ पोल पार स्पेसक्राफ्ट उतारने का रूस का सपना चूर-चूर हो गया.
चंद्रयान-3 मिशन की खास बातें
मिशन चंद्रयान-3 आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 14 जुलाई 2023 को लांच हुआ था. इसे LVM3 रॉकेट से छोड़ा गया था. 14 से 31 जुलाई तक यह पृथ्वी की कक्षा में रहा और इसके बाद 5 अगस्त को यह स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा था. 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉडयूल से विक्रम लैंडर अलग हुआ तथा 18 व 20 अगस्त को स्पेसक्राफ्ट ने डीबूस्टिंग ऑपरेशन पूरा किया. 20 अगस्त को चंद्रयान-3 की एलएम कक्षा को घटाकर 25 KM X 134 KM किया गया था ।
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