भोलेबाबा को देवो के देव महादेव भी कहते है | भारत में उत्तर से दक्षिण तक शिव जी के बहुत से मंदिर स्थित है , लेकिन क्या आप जानते है की दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर कौन सा है ? अगर नही तो आइये बताते है आपको इसके बारे में और इस दुनिया के सबसे ऊँचे शिव मंदिर का क्या है अर्जुन से कनेक्शन |
दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर कहा स्थित हैं ??
दुनिया के सबसे ऊँचे शिव मंदिर का नाम तुंगनाथ मंदिर हैं जोकि उत्तराखंड में स्थित है | तुंगनाथ भगवान शिव के पंच केदार में से एक है। उत्तराखंड में शिव जी के 5 प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित हैं, जिन्हें पंच केदार कहा जाता हैं। आज हम आपको बताएँगे कि इस मंदिर का महाभारत के अर्जुन से क्या संबंध हैं।
तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) की ऊँचाई कितनी हैं ??
तुंगनाथ मंदिर 3,680 मीटर यानी 12, 073 फीट की ऊंचाई पर चन्द्रनाथ पर्वत पर स्थित है | यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है | तुंगनाथ का शाब्दिक अर्थ है ‘चोटियों के भगवान’ | इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल जितना पुराना बताया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर की नींव महाभारत के अर्जुन द्वारा रखी गई थी।
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास
एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, तुंगनाथ मंदिर के निर्माण के लिए मान्यता है की हजारो साल पहले पांडव भाइयो ने भगवान् शिव को खुश करने के लिए एक मंदिर की स्थापना की थी |
पांड्वो पर अपने ही रिश्तेदारों की हत्या का पाप था, इसलिए ऋषि व्यास ने पांड्वो से खा था की वह पाप से मुक्त तभी हो सकते है, जब भगवान् शिव खुद उन्हें माफ़ करेंगे | इसके बाद पांड्वो ने शिवजी की तलाश शुरू कर दी और वे हिमालय जा पहुंचे।बहुत परिश्रम के बाद भोलेनाथ उन्हें भैंस के रूप में दर्शन देते हैं।
हालांकि, इसके बाद भी भगवान शिव ने उन्हें टाल दिया क्योंकि पांडव दोषी थे। तब शिव जी भूमिगत हो गए और बाद में उनके शरीर यानी भैंस के पांच अंग अलग-अलग जगहों पर उठ गए। इन पांचो जगहों पर पांडवों ने शिव मंदिर बनवाएं। इन पंच केदार के प्रत्येक मंदिर को भगवान शिव के शरीर के एक अंग के साथ पहचाना जाता है।
तुंगनाथ पंच केदार में से तीसरा (तृतीय केदार) है, जहां भगवान शिव के हाथ मिले थे। इसी के आधार पर मंदिर का नाम भी रखा गया। तुंग का अर्थ हाथ और नाथ भगवान के संदर्भ में कहा गया है। पंच केदार में इसके अलावा केदारनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर मंदिर आते हैं।
केदारनाथ में भगवान शिव की कूबड़ प्रकट हुई थी। रुद्रनाथ में उनका सिर, कल्पेश्वर में बाल जबकि मध्यमहेश्वर मंदिर में शिव जी की नाभि प्रकट हुई थी।यह जगह बेहद ठंडी है। सर्दियों के मौसम में यह बर्फ की चादर में ढक जाती है और तापमान इतना गिर जाता है कि इस दौरान मंदिर बंद कर दिया जाता है।
इस दौरान देवता की प्रतीकात्मक मूर्ति और पुजारियों को मुख्य मंदिर से 19 किलोमीटर दूर मुक्कुमठ में ले जाया जाता है। हालांकि अप्रैल से नवंबर माह के बीच मुख्य मंदिर में ही पूजा और दर्शन किए जाते हैं।
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