सुप्रसिद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान को 53वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टू में 3 फरवरी 1938 को एक सुशिक्षित तमिल-मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता जिलाधिकारी जैसे उच्च पद पर तैनात थे.

News Jungal Desk : वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टू में 3 फरवरी 1938 को एक सुशिक्षित तमिल-मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता जिलाधिकारी जैसे उच्च पद पर तैनात थे. परंतु वहीदा के जन्म के केवल 9 वर्ष बाद यानि वर्ष 1948 में उनके पिता का इंतकाल हो गया. उनकी माँ भी पिता के मृत्यु के सात वर्षों बाद चल बसी थीं. पिता की मृत्यु के एक वर्ष बाद वहीदा ने एक तेलुगु सिनेमा ‘रोजुलु मरई’ में बाल कलाकार की भूमिका के साथ सिनेमा जगत में कदम रखा. इस समय तक वह भरत नाट्यम की उम्दा नृत्यांगना बन चुकी थी. अब वह भारतीय सिनेमा की मुख्यधारा में आने के लिए प्रयास करने लगीं. इसी दौरान हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त के संपर्क में वह आईं और सिनेमा के रुपहले परदे पर छा गईं.

वहीदा रहमान का अभिनय सफ़र (Waheeda Rehman film career) –
वर्ष 1956 में गुरुदत्त ने वहीदा रहमान को देव आनंद के साथ ‘सी.आई.डी.’ में खलनायिका की भूमिका में लिया और यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट रही. इसके बाद वर्ष 1957 में गुरुदत्त और वहीदा रहमान की क्लासिक फिल्म ‘प्यासा’ रिलीज़ हुई. यह फिल्म गुरुदत्त और वहीदा के बीच प्रेम प्रसंग को लेकर काफी चर्चा में रहा. कहा जाता है कि वर्ष 1959 में रिलीज़ हुई गुरुदत्त की फिल्म ‘कागज़ के फूल’ उन दोनों के असफल प्रेम कथा पर आधारित थी. हालाँकि बाद के वर्षों में भी वहीदा रहमान ने गुरुदत्त के साथ दो अन्य फ़िल्में की थीं. इनमें वर्ष 1960 की ‘चौदहवीं का चाँद’ और वर्ष 1962 की ‘साहिब, बीबी और गुलाम’ प्रमुख हैं. इसके अलावा वहीदा की गुरुदत्त के साथ दो अन्य क्लासिक फ़िल्में ’12 ओ’ क्लॉक’ (1958) और ‘फुल मून’ (1961) भी हैं.

फिल्मों में देव आनंद के साथ वहीदा रहमान की जोड़ी खूब जमी थी. दोनों ने हिंदी फिल्म जगत को पांच सुपरहिट फ़िल्में दी थीं. ये फ़िल्में हैं-सी.आई.डी., सोलहवां साल, काला बाज़ार, बात एक रात की और गाइड. इसके अलावा दोनों ने दो और फ़िल्में ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘प्रेम पुजारी’ की थीं, परंतु दुर्भाग्यवश आलोचकों की सराहना के बावजूद बॉक्स-ऑफिस पर दोनों फ़िल्में फ्लॉप रहीं. फिल्म गाइड में वहीदा द्वारा अभिनीत चरित्र ‘रोजी’ और उनके अभिनय को उस ज़माने में काफी सराहा गया था. रोजी नाम की एक महिला का अपने पति को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ प्रेम प्रसंग, उस समय एक आम भारतीय पारंपरिक परिवार के लिए स्वीकार्य न होने के बावजूद फिल्म का सुपरहिट होना वहीदा और देव आनंद के सशक्त अभिनय का परिणाम था. उस समय वहीदा रहमान ने भी माना था कि अगर उसे फिर से ‘गाइड’ जैसी फिल्म में अभिनय करने का मौका मिलेगा तब भी वह संभवतः ही ‘रोजी’ जैसी चरित्र को निभा पाएंगी.

वर्ष 1962 में गुरुदत्त की टीम से अलग होने के बाद वहीदा रहमान ने निर्माता-निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म ‘अभिजान’ में काम किया. इसी वर्ष उनकी एक और सुपरहिट फिल्म ‘बीस साल बाद’ रिलीज़ हुई. फिर वर्ष 1964 में ‘कोहरा’ ने भी बॉक्स-ऑफिस पर कमाल दिखाया. वैसे भी 1960 का दशक वहीदा रहमान के कैरिएर के लिए बेहद सफल माना जाना चाहिए. इस दौर में वह हिट फिल्म देनेवाली अपनी समकालीन अभिनेत्रियों में सबसे आगे रही थीं. उपरोक्त उल्लेखित फिल्मों के अलावा उनकी इस दौर की अन्य हिट फिल्मों में वर्ष 1967 में प्रदर्शित ‘राम और श्याम’ और ‘पत्थर के सनम’ के अलावा, प्रसिद्ध अभिनेता सुनील दत्त के साथ अभिनीत एक फूल चार कांटे, मुझे जीने दो, मेरी भाभी और दर्पण प्रमुख हैं.

ऐसा भी नहीं है कि इस दौर में वहीदा की फिल्मों ने असफलता का स्वाद नहीं चखा था. सशक्त कहानी और फ़िल्मी आलोचकों की सराहना के बावजूद वर्ष 1966 में ‘तीसरी कसम’ और वर्ष 1971 में ‘रेशमा और शेरा’ का बॉक्स-ऑफिस पर असफल होना, सबके समझ से परे था. इतना ही नहीं इस दौरान अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ आईं वहीदा की फ़िल्में भी बिना हलचल मचाए परदे से उतर गईं थीं. फिर वर्ष 1974 में वहीदा की उस समय के सुपरस्टार रहे, अभिनेता राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘ख़ामोशी’ आई, जो बॉक्स-ऑफिस पर बेहद सफल रही. वर्ष 1959 से 1964 के दौरान वहीदा रहमान सबसे अधिक मेहनताना पाने वाली अभिनेत्रियों की सूची में तीसरे स्थान पर और वर्ष 1966 से 1969 के दौरान इस सूची में वह समकालीन अभिनेत्री नंदा और नूतन के साथ दूसरे स्थान पर रही थीं. अभिनेत्री नंदा वहीदा की सबसे नजदीकी दोस्तों में थीं. दोनों ने वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘काला बाज़ार’ में सह-कलाकार की भूमिका निभाई थीं.

वर्ष 1974 में शादी करने के बाद वहीदा रहमान ने फिल्मों में अपनी सक्रियता को कम कर दिया था. इस दौरान यानि वर्ष 1976 से 1994 के बीच उन्होंने लगभग 24 फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं की थीं. उनकी इस दौर की प्रमुख फ़िल्में थीं- अदालत, कभी-कभी, त्रिशूल, नमक हलाल, हिम्मतवाला, कुली, मशाल, अल्लाह रक्खा, चांदनी और लम्हें. फिर वर्ष 2000 में अपने पति की मृत्यु के पश्चात वह एक बार फिर से अदाकारी की दुनिया में लौटी और अब तक ‘रंग दे बसंती’ और ‘दिल्ली 6’ जैसी सफल फिल्मों सहित 9 फिल्मों में चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभा चुकी हैं.

यहां उल्लेखनीय है कि वहीदा रहमान ने एक लंबे अर्से तक हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रहे अमिताभ बच्चन के साथ दो अलग-अलग फिल्मों में माँ और प्रेमिका, दोनों प्रकार की भूमिकाएं की हैं. वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘अदालत’ में वह अमिताभ बच्चन की प्रेमिका की भूमिका में थीं, तो वर्ष 1978 में प्रदर्शित ‘त्रिशूल’ में वह अमिताभ बच्चन की माँ बनी थीं. हिंदी फिल्मों में सराहनीय योगदान के लिए वहीदा रहमान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. उनको मिले पुरस्कारों में राष्ट्रीय पुरस्कार और देश का नागरिक सम्मान भी शामिल हैं.

वहीदा रहमान का निजी जीवन

अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त के साथ विफल प्रेम संबंध और उनकी टीम को छोड़ने के बाद वहीदा रहमान ने वर्ष 1964 में ‘शगुन’ नाम की फिल्म की थी. इस फिल्म में उनके सह-कलाकार कमलजीत सिंह थे. यह फिल्म तो नहीं चली परंतु दोनों के दिल मिल गए. फिर वर्ष 1974 में दोनों ने शादी कर ली और मुंबई छोड़कर बंगलौर के पास स्थित एक फार्म हाउस को अपना ठिकाना बना लिया. यहां गौर करने वाली बात है कि कमलजीत सिंह का वास्तविक नाम शशि रेखी था. 1960 के दशक में वह भी फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे थे. परंतु वह असफल रहे और अंततः बिज़नस की दुनिया में लौट गए. बंगलौर के फार्म हाउस में रहने के दौरान उनकी बेटी काश्वी रेखी और बेटा सोहेल रेखी का जन्म हुआ. वर्ष 2000 के दौरान कमलजीत के बीमार होने की वजह से वहीदा रहमान अपने परिवार के साथ मुंबई लौट गईं और मुंबई के बांद्रा बैंडस्टैंड स्थित ‘साहिल’ में फिर से अपना बसेरा बना लिया. यहीं पर 21 नवम्बर 2000 को कमलजीत का निधन हुआ. वहीदा रहमान का बेटा सोहेल रेखी एमबीए करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है, तो वहीँ बेटी काश्वी रेखी एक ज्वेलरी डिज़ाइनर है. काश्वी ने वर्ष 2005 में बनी फिल्म ‘मंगल पांडे’ में ‘स्क्रिप्ट सुपरवाइजर’ के साथ फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने का भी प्रयास किया था, परंतु इस फिल्म के बाद वह इंडस्ट्री से अलग ही रहीं.

वहीदा रहमान को मिले पुरस्कार और सम्मान (Waheeda Rehman Awards & Recognition)
पुरस्कार और सम्मान फिल्म वर्ष
फिल्मफेयर – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार गाइड 1966
बंगाल फ़िल्मी संघ पुरस्कार तीसरी कसम 1967
फिल्मफेयर – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार नीलकमल 1968
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री रेशमा और शेरा 1971
नागरिक सम्मान – पद्म श्री – 1972
फिल्मफेयर – लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड – 1994
एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार – आंध्र प्रदेश सरकार – 2006
नागरिक सम्मान – पद्म भूषण – 2011
वस्तुतः वहीदा का मतलब ‘लाजवाब’ होता है. अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी सिनेमा की सदाबहार अभिनेत्री वहीदा रहमान ने अपने नाम को सार्थक करते हुए, हिंदी सिनेमा को अपने लाजवाब अभिनय से रूबरू कराते हुए अभिनय के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बनाया है.

यह भी पढ़े : शरीर को तिल-तिल खोखला कर देता है हाई कोलेस्ट्रॉल, अगर ये लक्षण दिखें तो न करें अनदेखा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *