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30 मई को गंगा दशहरा, पिता के श्राप से पृथ्वी पर हुआ अवतरण, पढ़ें 5 रोचक बातें

इस साल गंगा दशहरा 30 मई को मनाया जायेगा . मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को हुआ था, वह ब्रह्म देव की पुत्री हैं. मां गंगा के जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, शिवजी से विवाह की इच्छा थी, अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाने, ब्रह्म देव के श्राप से जुड़ी कई बातें हैं ।

News Jungal Desk : इस साल गंगा दशहरा 30 मई को है. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इसलिए हर साल इस तिथि को गंगा दशहराganga dussehra  मनाते हैं. गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के बड़े पर्व में से एक है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पूर्वजन्म के भी पाप मिट जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को हुआ था, वह ब्रह्म देव की पुत्री हैं.

गंगा दशहरा 2023: गंगा से जुड़ी रोचक बातें
1. गंगा का जन्म:  भगवान विष्णु ने वामन अवतार में जब एक पैर आसमान में उठाया तो ब्रह्म देव ने उसे जल से धोया और पानी को कमंडल में रख लिया. कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ. यह भी कहते हैं कि वामन देव के पैर से आसमान में छेद हुआ और उससे गंगा का जन्म हुआ.

पिता ब्रह्म देव ने गंगा को दिया धरती पर रहने का श्राप: एक बार ब्रह्म देव की सेवा में देवताओं के साथ राजा महाभिष भी उपस्थित थे. वहां पर गंगा ने उनको देखा. वे दोनों एक दूर देखने लगे. तभी ब्रह्म देव ने उन दोनों को देख लिया. इससे वे क्रोधित हो गए. उन्होंने महाभिष और गंगा Ganges को श्राप दिया कि तुम दोनों को पृथ्वी लोक में जन्म लेना होगा क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं हो सकती.

3. राजा शांतनु से हुआ गंगा का विवाह:  कहा जाता है कि ब्रह्म देव के श्राप के कारण ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ. फिर महाभिष राजा प्रतीप के घर शांतनु के रूप में जन्में और गंगा पृथ्वी पर स्त्री रूप में आईं. उसके बाद गंगा और शांतनु का विवाह हुआ. उसके बाद उनके 8वें पुत्र के रूप में भीष्म का जन्म हुआ.

 शिव जी को पति स्वरूप पाना चाहती थीं माॅ गंगा
कहा जाता है कि ब्रह्म देव ने जन्म के बाद गंगा को हिमालय को सौंप दिया था. हिमालय की पुत्री माता पार्वती हैं. इस तरह से गंगा और पार्वती बहन हो गईं. गंगा भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं, लेकिन माता पार्वती इससे खुश नहीं थीं. गंगा ने कठोर तप से भोलनाथ को प्रसन्न किया तो उन्होंने उनको अपने समीप रहने का वरदान दिया. पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं में बांध लेते हैं. वहीं से गंगा भगवान शिव की जटाओं से होकर पृथ्वी पर बहने लगती हैं.

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