जानें आज तक क्यों नही सूखा इस कुंड का जल?5000 साल पहले सप्त ऋषियों ने किया था निर्माण

सतकुंभा का इतिहास लगभग 5000 साल से भी अधिक पुराना है.बताया जाता है कि सतयुग में यहां सप्त ऋषि आए थे और उन्होंने एक कुंड का निर्माण किया था.जिसमें आज भी सभी दिशाओं से धाराएं बहती हैं. इस तीर्थ का जल प्राचीन काल के समय से लेकर अब तक समाप्त नहीं हुआ है. बाबा सीताराम ने इस प्राचीन स्थान को एक बार फिर से जीवित किया था.

News Jungal Desk :- भारत के इतिहास से जुड़े बहुत से ऐतिहासिक स्थल आज भी हरियाणा में मौजूद हैं.ऐसा ही एक ऐतिहासिक स्थल है सोनीपत के गांव खेड़ी गुर्जर में.सतकुंभा Satkumbha का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है.बताया जाता है कि सतयुग में यहां सप्त ऋषि आए थे और उन्होंने एक कुंड का निर्माण किया था. जिसमें आज भी सभी दिशाओं से धाराएं बहती हैं. आज भी इस कुंड में नहाने के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं . साथ ही पास में स्थित प्राचीन शिव मंदिर में माथा टेकते हैं और उसके बाद बाबा सीताराम के दर्शन करते हैं. सप्त ऋषियों के कुंड के साथ हवन के लिए 7 कुंड भी यहां बनाए गए थे .

प्राचीन काल में चकवा बैन न्यायप्रिय एवं चक्रवर्ती सम्राट थे. राजा चकवा बैन राजकोष से कोई भी खर्च न लेकर अपने परिवार का खर्च रस्सी बनाकर व खेतों में स्वयं हल चला कर करते थे. उनकी रानी बिंदु मति भी अपने परिवार के लिए पीने का पानी स्वयं ही भर कर लाती थी. राजा का इतना प्रताप था कि पृथ्वी के सभी राजा चकवा बैन को वार्षिक कर के रूप में सोना भेंट करते थे. जिनमें लंका का राजा रावण भी शामिल था.

चुनकट ऋषि और चकवा बैन में हुआ था युद्ध
यह स्थान ऋषि मुनियों व तपस्वियों का स्थान रहा है. इस स्थान पर श्री चुनकट ऋषि ने घोर तपस्या की थी . चुनकट ऋषि का नाम बचपन में श्रीकांत था. जिन्होंने महाऋषि अंगीरा से आलौकिक ज्ञान प्राप्त किया. वहीं चकवा बैन व चुनकट ऋषि युद्ध हुआ, जिस वजह से राजा चकवा बैन की संपूर्ण सेना व उसकी राजधानी का सर्वनाश हो गया. बाद में राजा चकवा बैन ने चुनकट ऋषि से क्षमा याचना कर हिमालय पर्वत पर घोर तप करने के लिए चले गए.

यह भी पढ़े : आंवला का सेवन काफी लाभदायक,इन सनस्याओं से तुरंत मिलेगी निजात

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *