कुंभ मेला भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जहां लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए आते हैं। इसकी जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं से गहराई से जुड़ी हुई हैं। कुंभ मेले की कहानी अमृत, देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन और उससे जुड़े घटनाओं पर आधारित है।
समुद्र मंथन की कथा
कुंभ मेले की कहानी की शुरुआत समुद्र मंथन से होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता अपनी शक्तियां खो बैठे थे। इस स्थिति का लाभ उठाकर असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। हार से व्यथित देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया, ताकि अमृत की प्राप्ति हो सके।
अमृत कलश और देव-असुर संघर्ष
समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले, जिनमें अमृत कलश सबसे महत्वपूर्ण था। जैसे ही अमृत कलश प्रकट हुआ, इसे पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को छलपूर्वक अमृत से वंचित कर दिया।
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अमृत की बूंदों का पृथ्वी पर गिरना
अमृत कलश की सुरक्षा के लिए इंद्र के पुत्र जयंत को सौंपा गया। जयंत अमृत कलश लेकर स्वर्ग की ओर उड़ चला, लेकिन असुरों ने उसका पीछा किया। देवताओं और असुरों के बीच 12 दिव्य दिनों तक युद्ध हुआ, जो पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर माना जाता है। इस युद्ध के दौरान अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक पर गिरीं। यही चार स्थान कुंभ मेले के आयोजन के लिए पवित्र माने गए।
ग्रहों की स्थिति और कुंभ मेले का आयोजन
कुंभ मेले की तिथियां सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष स्थिति पर निर्भर करती हैं।
प्रयागराज में कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति वृषभ राशि और सूर्य मकर राशि में होते हैं।
हरिद्वार में कुंभ मेला बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में होने पर होता है।
उज्जैन में कुंभ मेला बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में होते हैं।
नासिक में कुंभ मेला सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।
आगामी कुंभ मेला 2025
इस वर्ष कुंभ मेला 13 जनवरी, 2025 से प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में शुरू होगा और 26 फरवरी, 2025 तक चलेगा। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और आस्था का अद्भुत उदाहरण है।