News Jungal Desk :– आज पूरा देश ‘कारगिल विजय दिवस’ मना रहा है । और आज से 24 साल पहले 26 जुलाई, 1999 को भारत के बहादुर सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर में कारगिल की दुर्गम चोटियों से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़कर विजय प्राप्त की थी । और भारत ने इस युद्ध को ऑपरेशन विजय नाम दिया था. यह भारतीय सैन्य अभियान का कोड नाम था. पाकिस्तान के खिलाफ भारत का यह युद्ध 3 मई को शुरू हुआ था और 26 जुलाई तक जारी रहा. 2 महीने 23 दिन के इस युद्ध में भारत के कई वीर सपूत शहीद हुए थे ।
भारत के इन शहीदों में कैप्टन विजयंत थापर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. वीर चक्र से सम्मानित विजंयत थापर को सेना में शामिल हुए महज छह महीने ही हुए थे कि करगिल युद्ध छिड़ गया. इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले विजयंत सबसे कम उम्र के सैनिक थे. कैप्टन विजयंत थापर को बहादुरी और साहस खून में ही मिला था. उनके पिता कर्नल वीएन थापर हैं. अपने परिवार में विजयंत चौथी पीढ़ी के सैन्य अधिकारी थे. जिस समय कारगिल में युद्ध शुरू हुआ विजयंत केवल 22 वर्ष के थे. 28 जून 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए विजयंत ने भारत मां के लिए खुद को न्यौछावर कर दिया ।
हिंद पॉकेट बुक्स से विजयंत थापर के जीवन पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी- “कारगिल में विजयंत- एक योद्धा की कहानी.” इस पुस्तक को विजयंत के पिता कर्नल वीएन थापर और कारगिल युद्ध में शहीद की पुत्री तथा आर्मर्ड कॉर्प्स अफसर की पत्नी नेहा द्विवेदी ने मिलकर लिखा है. अंग्रेजी में आई इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद किया है डॉ. ऋतु भनोट ने.
“कारगिल में विजयंत– एक योद्धा की कहानी” में कैप्टन विजयंत थापर के जीवन से जुड़े तमाम किस्से हैं. उनके जन्म, पढ़ाई-लिखाई, सैना में भर्ती होना और कारगिल युद्ध की कुछ घटनाओं का जिक्र है. इस पुस्तक में विजयंत की एक चिट्ठी भी है जो उन्होंने अपने माता-पिता को लिखी थी. इस उनका आखिरी ख़त बताया गया है. विजयंत के घर का नाम रॉबिन था. पुस्तक में प्रकाशित इस ख़त को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. इस ख़त के माध्यम से पता चलता है कि विजयंत ने यह ख़त उस समय लिखा था जब वे जिंदगी की आखिरी लड़ाई लड़ने जा रहे थे. उन्हें पता था कि चंद सैनिकों की टुकड़ी पाकिस्तान की बड़ी सेना के साथ युद्ध लड़ने जा रही है तो इसका परिणाम क्या होगा. इसलिए विजयंत को साफ नजर आ रहा था कि वे इस युद्ध में अवश्य शहीद होंगे. अहम बात यह है कि विजयंत ने अगले जन्म में भी एक सैनिक होने की कामना की थी. प्रस्तुत यह चिट्ठी-
प्रिय पापा, मामा, बर्डी और ग्रेनी,
1. जिस समय आपको यह पत्त्र मिलेगा, उस समय तक मैं स्वर्ग में अप्सराओं के बीच से आप सब को देख रहा होऊंगा.
2. मुझे ज़िंदगी में कोई खेद नहीं है, अगर फिर से इनसान के रूप में मेरा जन्म हुआ, तो मैं फौज में भर्ती होकर अपने देश की सेवा करूंगा.
3. अगर आप लोग आ सकते हैं, तो कृपया आकर उस जगह को ज़रूर देखिए, जहां भारतीय सेना ने आपके आने वाले कल के लिए लड़ाई लड़ी थी.
4. जहां तक हमारी यूनिट का सवाल है, तो नए जवानों को इस बलिदान के बारे में ज़रूर बताया जाना चाहिए. मुझे आशा है कि मेरी तस्वीर ‘ए’ कॉय मंदिर में करणी माता के साथ रखी जाएगी.
5. हमारे शरीर से अंगदान के तौर पर जो भी अंग लिया जा सकता है, उसे ज़रूर लिया जाए.
6. कृपया कुछ पैसे अनाथ आश्रम को दे देजिएगा और हर महीना पचास रुपया रुखसाना को देते रहिएगा और योगी बाबा से भी ज़रूर मिलिएगा.
7. बर्डी को मेरी शुभकामनाएं, कृपया इन लोगों के बलिदान को कभी मत भूलिएगा. पापा, आपको गर्व होना चाहिए और मम्मा आपको भी. कृपया…से (निजता की वजह से नाम हटा दिया गया है) मिलते रहिएगा (मैं उससे प्यार करता हूं). मामाजी मेरी भूल-चूक को माफ कर देना।
ठीक है फिर, अब मेरा डर्टी डजन की टुकड़ी के साथ जाने का वक्त हो गया है. मेरे हमलावर दस्ते में बारह जवान हैं.
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