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महाकुंभ 2025: साधारण व्यक्ति को महान बनाने की यात्रा

महाकुंभ 2025 में अब तक लगभग 7 करोड़ श्रद्धालुओं ने शाही स्नान कर लिया है। (महाकुंभ 2025) कुंभ मेला न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक महिमा के लिए प्रसिद्ध है। यह पर्व साधारण व्यक्ति को महान बनने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है।

कुंभ का अर्थ और महत्व

‘कुंभ’ शब्द का सामान्य अर्थ ‘घड़ा’ होता है, लेकिन इसके पीछे जनमानस में कल्याण और मंगलकामना की भावना छिपी होती है। कुंभ का वास्तविक अर्थ समग्र सृष्टि के कल्याण और जन-उद्धार की प्रेरणा को समेटे हुए है।

शास्त्रों के अनुसार:
कुंभ पर्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह पृथ्वी को शुभ संकेत देने और भविष्य में कल्याण की सूचना प्रदान करने के लिए है।

“पृथ्वी को कल्याण की आगामी सूचना देने के लिये या शुभ भविष्य के संकेत के लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य-स्थानविशेष के उद्देश्य से निर्मल महाकाश में बृहस्पति आदि ग्रह उपस्थित हों जिसमें, उसे ‘कुंभ’ कहते हैं।” (महाकुंभ 2025)

कुंभ पर्व की स्थापना

पुराणों के अनुसार, कुंभ पर्व की स्थापना बारह की संख्या में की गई है। इनमें से चार पर्व मृत्युलोक (पृथ्वी) के लिए और आठ देवलोक (स्वर्ग) के लिए माने गए हैं।

श्लोक:

कुंभ पर्व का उद्देश्य मनुष्य मात्र के पापों का नाश और उसके उद्धार का मार्ग प्रशस्त करना है। यह हर 12वें वर्ष हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।

देवानां द्वादशाहोभिर्मत्यैर्द्वादशवत्सरैः
जायन्ते कुम्भपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया।

अमृत मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा

कुंभ पर्व का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है, जब देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए मंथन किया। अमृत से भरे घड़े (कुंभ) की प्रतिष्ठा भारत के चार पवित्र स्थलों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—में हुई। इन स्थानों पर बारहवें वर्ष विशिष्ट ग्रह-योग बनने पर कुंभ पर्व मनाया जाता है।

कुंभ के अवसर पर ग्रह-योग का महत्व

कालचक्र में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति कुंभ पर्व का आधार है। जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में अमावस्या के दिन दुर्लभ कुंभ का आयोजन होता है। इस ग्रह-योग में सभी ग्रह मित्रतापूर्ण और शुभ स्थिति में होते हैं।

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कुंभ और भारतीय संस्कृति

कुंभ पर्व भारतीय संस्कृति और धर्म का अनुपम संगम है। इस अवसर पर सभी धर्म-सम्प्रदाय के लोग एकत्रित होकर समाज, धर्म और राष्ट्र की एकता पर विचार करते हैं।

स्नान और दान का महत्व:
स्नान, दान, तर्पण और यज्ञ का वातावरण देवताओं को भी आकृष्ट करता है। ऐसा माना जाता है कि इस पर्व के दौरान देवता, पितर, यक्ष और गंधर्व पृथ्वी पर उपस्थित होकर जीव मात्र को पवित्र करते हैं।

दिव्य संतों की उपस्थिति

कुंभ में दिव्य संतों की उपस्थिति इस पर्व को और भी विशेष बनाती है। ये संत केवल कुंभ के दौरान ही दिखाई देते हैं और इसके समाप्त होने के बाद अज्ञात स्थान पर चले जाते हैं।

स्वामी अंजनी नंदन दास के अनुसार, ये संत स्वर्ग के देवगण हैं, जो मनुष्यों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। उनके आशीर्वाद से मनुष्य का जीवन समृद्ध और अवसादमुक्त होता है।

कुंभ: साधारण से महान बनने का अवसर

कुंभ पर्व न केवल आध्यात्मिक शुद्धिकरण का अवसर है, बल्कि यह व्यक्ति को महान बनने की प्रेरणा भी देता है। यहां हर व्यक्ति को अपने धर्म, संस्कृति और जीवन के उद्देश्य को समझने का अवसर मिलता है।

महाकुंभ 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा और समाज के कल्याण का महापर्व है।

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