मकर संक्रांति का महत्व
सनातन धर्म में मकर संक्रांति का अत्यधिक महत्व है। यह पर्व प्रतिवर्ष सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन साधक गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान और ध्यान करते हैं। साथ ही, सूर्य देव की पूजा और उपासना की जाती है। Makar Sankranti 2025
मकर संक्रांति कब मनाई जाती है?
मकर संक्रांति का त्योहार तब मनाया जाता है, जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह पर्व जनवरी माह में 14 या 15 तारीख को पड़ता है। इस दिन गंगा स्नान, ध्यान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन दान-पुण्य करने से जीवन में सुख-शांति आती है।
संक्रांति क्या है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है। पूरे साल में सूर्य देव 12 राशियों में गोचर करते हैं। एक राशि में सूर्य 30 दिनों तक रहते हैं। हालांकि, 12 संक्रांति में से मकर संक्रांति और मीन संक्रांति को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।
मकर संक्रांति का महत्व क्यों है?
जब सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है, जिससे शादी-विवाह और अन्य मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं।
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मकर संक्रांति की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी, भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जाकर मिली थीं। इस कारण मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
देशभर में मकर संक्रांति के नाम
भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे पोंगल, खिचड़ी, उत्तरायण, और संक्रांति। हर क्षेत्र में इसे अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।