तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टैलिन ने विगत दिनों केन्द्रीय कोआपरेशन मंत्री अमित शाह से अनुरोध किया है कि वे अमूल के तमिलनाडु के कृष्णागिरि, धर्मापुरी, वेल्लोर, रानीपेट, थिरूपथुर, कांचीपुरम और थिरूवेल्लूर जिले में दूध की खरीद की मंशा पर लगाम लगाएं। अमूल जो अभी राज्य में रिटेल आउटलेट से अपने दुग्ध उत्पाद बेच रहा है अब अपने बहुराज्यीय कोआपरेटिव लाइसेंस की आड़ में कृष्णागिरि जिले में शीतल केन्द्र और प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की फिरार्क में है, जो राज्य की आवनि दुग्ध ब्रांड का ओसारा है। अमूल का यह कदम नियम के प्रतिकूल है जिसमें यह निहित है कि कोआपरेटिव एक दूसरे क्षेत्र में घुसपैठ न करें। दरअसल कर्नाटक के चुनाव में जिन दो मुद्दे भाजपा की रेड़ मार दी उनमें राज्य सरकार पर चालीस प्रतिशत कमीशन का भ्रष्टाचार और अमूल बनाम नंदिनी के हैषटैग- गो बैक अमूल और सेव नन्दिनी की च्युंगम ऐसी चिपकी जो किसी गदा या तलवार से नहीं छूटी। भाजपा ने खूब राग अलापा कि कर्नाटक मे अमूल का प्रवेश तो वर्ष 2017 में कांग्रेस के नेतृत्त्व वाली सिद्वारमैया सरकार के सामने हुआ लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी शिवकुमार की हसन शहर में दुकानों पर नन्दिनी दूध के प्रमोशन वाली तस्वीरों के साामने बेसुरा साबित हुआ।
निहितार्थ यह है कि घी-दूध की नदियों के रूप में अतीत की समृद्धि का परिचायक दूध सदियों बाद पुरानी शान और नए अवतार में सेहत के साथ राजनीति के अखाडेे में भी ताल ठोंकता नजर आ रहा है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीे के संकल्प के मद्दे नजर डा0वर्गीज कुरियन के दूरदर्शी नेतृत्त्व में वर्ष 1970 में एन डी डी बी की स्थापना के साथ जब देश में श्वेत क्रान्ति की अलख जगाई गई थी तब देश में हर व्यक्ति के हिस्से में आधा पाव दूध का भी नहीं आता था और ताजा आंकड़ों की बात करें तो प्रतिदिन यह मात्रा आधा लीटर तक पहुंच गई है। गौर तलब है कि दुनिया में औसतन हर व्यक्ति के हिस्से में 322 ग्राम दूध ही आता है। विश्व उत्पादन में चौबीस प्रतिशत की साझेदारी के साथ देश दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करनेे वाला देश बन गया है, जबकि आबादी के हिसाब से हम 17.7 प्रतिशत और भूक्षेत्र के 2.4 प्रतिशत ही हैं।
केन्द्रीय मंत्री पुरूषोत्तम रूपाला की लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक 2022 तक देश में हर रोज 58 करोड़ लीटर उत्पादन हो रहा था और यह आंकड़ा 2023 में और मजबूत हुआ होगा क्योंकि वर्ष 2015 से 2022 के बीच में दुग्ध उत्पादन में 51 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। दुनिया में हमारे डेयरी प्रोडक्ट के निर्यात का आंकड़ा दिसंबर 2022 में 4700 करोड रूपए पहुंच गया है जो 2021 में इससे तकरीबन आधा था। हमारे डेयरी ब्रांड चीन, अमेरिका और खाड़ी के देशों में भी़ अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया हैं।
जहां तक अमूल की बात है तो इसकी नींव आजादी से आठ महीने पहले गुजरात के आणंद कस्बे में रखी गई थी और देश में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिएु स्थापित जिस एनडीडीबी संस्था का गठन हुआ उसकी प्रेरणा भी अमूल के ही कोआपरेटिव माडल से ली गई है। वर्तमान मंे स्वामित्व गुजरात सरकार के कोआपरेंशन विभाग का है। एक हजार कर्मचारियों और 36 लाख से भी अधिक दुग्ध उत्पादकों की शक्ति वाली इस कोआपरेटिव का वर्ष 2022 में राजस्व 55 हजार करोड़ रूपए का था और यह भारत की सबसे बड़ी डेयरी प्रोडक्ट्स कोआपरेटिव संस्था है। यह अब गुजरात तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में तेजी से पैर पसार रही है। उसका यह इरादा उसके अमूल दूध पीता है इंडिया़ से भी घ्वनित होता। कर्नाटक के मांड्या जिले में एक मेगा डेयरी के उद्घाटन के समय केन्द्रीय मंत्री अमित शाह के इस बयान को कि कर्नाटक में अमूल और नन्दिनी यदि साथ मिलकर काम कर परें तो तीन साल में हर गांव को प्राथमिक डेयरी मिल सकती, विपक्ष ने राज्य की अस्मिता और गौरव से जोड़कर अमूल को खलनायक बना दिया।,
विपक्ष देश में मोदी सरकार के विरुद्ध पहले गुजरात के अडानी और अंबानी का नैरेटिव जो सुप्रीम कोर्ट के पैनल की प्रथम दृष्टया रिपोर्ट के बाद कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है, राज्यों और लोकसभा के 2024 चुनाव ्में अमूल को मुद्दा में बनाने में कोई चूक करेगा, ऐसा नहीं लगता, खासकर जब कर्नाटक में उसे इससे फायदा हुआ है। स्टैलिन की अमित शाह को चिट्ठी उसी की पूर्वभूमिका है। देश के हर राज्य में अपने अपने डेयरी कोआपरेटिव ब्रांड बाजार में हैं। दिल्ली में मदर डेयरी हरयाणा में वीटा, पंजाब में वर्का, हिमाचल में हिम उत्तराखंड में आंचल, उत्तर प्रदेश में पराग और नमस्ते इंडिया राजस्थान में सरस मध्यप्रदेश में सांची, छत्तीसगढ में देवभोग, महाराष्ट, में महानन्द और गोकुल सहित छ क्षेत्रीय ब्रांड, पश्चिम बंगाल में बांग्ला डेयरी और ओडीशा में प्रगति मिल्क ब्रांड हैं, जिन्हें वहां के क्षत्रप राज्य के गौरव से जोड़कर भाजपा के विजय रथ को रोकने का हर संभव प्रयास कर सकते हैं। इन ब्रांडों के पीछे लाखों-करोड़ों की संख्या में दुग्ध आपूरक किसान हैं, उनकी यूनियनें हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों से जुड़ें हैं और चुनावों को प्रभावित करते हैं।
अमूल की ताकत उसका मार्केटिंग नेटवर्क है, जिसके चलते वह स्थानीय डेयरियों की तुलना में दूग्ध उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं को न केवल बीस प्रतिशत तक ज्यादा कीमत देकर प्राथमिकता के तौर दूध खरीदने में बाजी मार लेता है बल्कि बड़े शहरों में अधिक मूल्य पर बेच भी कामयाब हो जाता है। उसने यही बंगलुरू में किया, जो दूध नन्दिनी 39 रुपए में बेच रही थी, वही दूध अमूल आन लाइन 57रुपए प्रति लीटर बेच रहा था। अमूल अपनी आपूर्ति पूरी करने के लिए अपने लाइसेंस का लाभ लेकर गांव और ब्लाक स्तर पर कलैेक्शन सेंटर और कूलिंग प्लांट लगाने की कोशिश कर रहा है, जिसका कि राज्य स्तरीय कोआपरेटिव डेयरियां विरोध कर रही हैं क्योंकि इससे उनकी दुग्ध आपूर्ति प्रभावित होती है और यह बड़ी मछली के छोटी मछली को खाने जैसा साबित हो रहा है। लोकसभा के आम चुनाव के पहले छह राज्यों- आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें गैर भाजपा दल इस मुद्रदे को हवा देने की कोशिश कर सकते हैं, इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश पहले पांच दुग्ध उत्पादक राज्यों में आते हैं।
सेहत के क्षेत्र में दूध की ताकत किसी से छिपी नहीं लेकिन राजनीति और अर्थव्यवस्था में उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि मोदी सरकार में डेयरी कोआपरेशन मंत्रालय नरेन्द्र मोदी के बाद देश के सबसे ताकतवर मंत्री अमित शाह को सौंपा गया है। देखने वाली बात होगी कि अमूल बनाम राज्य स्तर की डेयरियों के मल्लयुद्ध का अखाड़ा किस दल को सत्तारोहण में मददगगार साबित होता है। राउंड में भाजपा भलेे पिछड़ी नजर आ रही हो, लेकिन आगे भी ऐसा होगा जरूरी नहीं क्योकि फिलहाल अमित शाह का नाम ऐसे राजनीतिज्ञों मेे शुमार है, जिसे हारी बाजी जीतने का तमगा हासिल है।
(विश्लेषक न्यूज जंगल मीडिया के दिल्ली एनसीआर के विशेष संवाददाता हैं)