बाराबंकी में चीरा लगाकर अफीम पैदा करने के मुकाबले विदेशों की तर्ज पर सीपीएस (CPS) पद्धति से अफीम की खेती के लिए अधिक किसानों को पट्टे जारी कर रहा है. क्योंकि इस तकनीक से अफीम की चोरी, तस्करी जैसे अपराधों पर अंकुश लग सकता है ।

News jungal desk : एक समय अफीम का गढ़ कहे जाने वाले बाराबंकी जिले में इसकी खेती का दायरा बढ़ाने की कवायद फिर शुरू हुई है । यहां इस बार काश्तकारों की संख्या पिछले साल के ढाई हजार लाइसेंस के मुकाबले दो गुनी कर दी गई है । और जिला अफीम कार्यालय पर छह जिलों के पांच हजार किसानों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया चल रही है । इन छह जिलों में बाराबंकी, लखनऊ, रायबरेली, अयोध्या, गाजीपुर और मऊ जिले शामिल है. सबसे ज्यादा लाइसेंस बाराबंकी में जारी होने हैं ।
इस बार विभाग काश्तकारों को लाइसेंस ऑनलाइन भी जारी कर रहा है । और वहीं नारकोटिक्स विभाग इस बार बाराबंकी में चीरा लगाकर अफीम पैदा करने के मुकाबले विदेशों की तर्ज पर सीपीएस (CPS) पद्धति से अफीम की खेती के लिए अधिक किसानों को पट्टे जारी कर रहा है । और क्योंकि इस तकनीक से अफीम की चोरी, तस्करी जैसे अपराधों पर अंकुश लग सकता है. साथ ही इसमें फसल पर मौसम की मार का खतरा भी कम रहता है ।
CPS पद्धति से होगी अफीम की खेती
आपको बता दें कि सीपीएस (CPS) पद्धति से एक तरफ जहां तस्करी की संभावना कम रहती है, तो वहीं अफीम उत्पादन का यह सही तरीका भी है. क्योंकि इसमें फसल पर मौसम की मार का खतरा भी कम रहता है. दरअसल, सीपीएस पद्धति में सीधे डोडे से अफीम निकालते हैं. इस प्रक्रिया से अफीम में मार्फिन, कोडिन फास्टेट और अन्य रसायन की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती है. आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में सीपीएस पद्धति से अफीम की खेती की जा रही है.
लाइसेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे
हालांकि भारत में अभी भी परम्परागत खेती के तहत डोडे में चीरा लगाकर उसका दूध बर्तन में इकठ्ठा किया जाता है. यह दूध अफीम बनने के बाद नारकोटिक्स विभाग को दिया जाता है. वहीं सीपीएस पद्धति के तहत फसल में जब डोडे और अफीम आने लगती है तो सरकार पौधे के अधिकांश भाग को काट लेती है. मशीनों से डोडे के अंदर से अफीम निकाली जाती है. इसमें अफीम करीब 40 फीसदी ही निकलती है. लेकिन इससे अफीम की चोरी, तस्करी जैसे अपराधों पर अंकुश लगता है.
जिला अफीम अधिकारी लाला राम दिनकर ने बताया कि इस बार चीरा लगाने के मुकाबले सीपीएस पद्धति के ज्यादा लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं. सीपीएस पद्धति में किसानों को नुकसान की आशंका कम रहती है. किसान भी इस पद्धति से खुश दिखाई दे रहे हैं क्योंकि इस पद्धति के तहत कृषि करने वाले किसानों को अफीम की ओसत का झंझट नहीं होता है. हालांकि अभी सभी किसानों को सीपीएस पद्धति अनिवार्य नहीं की गई है. किसान परंपरागत रूप से भी अफीम का उत्पादन भी कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में विदेशों की तरह यहां भी सभी किसानों के लिए सीपीएस पद्धति लागू किए जाने की योजना है ।
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