न्यूज जगंल विशेष
कानपुर। आरटीआई से मिली सूचना ने सेहत से खिलवाड़ करने संबंधी बड़ी रिपोर्ट में खुलासा किया है। इन हालात में हर घर में नल से जल योजना को पलीता लग जाए तो बड़ी बात न होगी। ऐसे में साफ पानी आपूर्ति का सरकारी दावा सवालों के घेरे में आ सकता है। वाटर एंड सेनिटेशन मिशन (यूपी) ने अनिल सिंदूर की आरटीआई के जवाब में भूगर्भ जल गुणवत्ता परीक्षण सर्वे रिपोर्ट चौंकाने वाली है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एवं पत्रकार अनिल सिंदूर कहते हैं कि उन्हें साफ लगता है कि अधिकारियों को पता ही नहीं है कि इस समस्या को कसे हैंडल करें। एक दूसरे पर थोपा जा रहा है। सर्वे रिपोर्ट में कानपुर, उन्नाव, फतेहपुर समेत 63 जिलों में भू-गर्भ जल में फ्लोराइट की मात्रा तीन पीपीएम तक मिली है। इनमें 25 जनपदों में आर्सेनिक की मात्रा एक पीपीएम तक मिली। इन जिलों विकास अधिकारियों को सर्वे रिपोर्ट का 60 फीसदी अपने स्तर पर सत्यापन करवाना था, लेकिन पता चला है कि अधिकतर जिलों में यह सर्वे रिपोर्ट की फाइन अलमारियों में बन्द है। राज्य के 63 जिलों के भू-गर्भ जल में मानक से ज्यादा फ्लोराइड, 25 जिलों में आर्सेनिक तथा 18 में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों पाया गया है।
सरकारी तंत्र छुपा रहा है रिपोर्ट
भूगर्भ जल में मानक से ज्यादा फ्लोराइड, आर्सेनिक स्वास्थ के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। गुणवत्ता की यह रिपोर्ट पोर्टल के माध्यम से सार्वजनिक किया जाना था पर यह आज तक नहीं किया गया। यह भी बताया गया है कि केंद्र ने पेयजल गुणवत्ता के दृष्टिगत 2015-16 के बजट में 150 करोड़ की राशि वाटर एंड सेनिटेशन मिशन यूपी को दी थी जिससे वह प्रत्येक गांव, कस्बा व शहर में पेयजल स्रोतों की भूगर्भ जल गुणवत्ता परीक्षण सर्वे करवाये और इस रिपोर्ट को पोर्टल के माध्यम से सार्वजानिक करे। सिंदूर के अनुसार लेकिन इस पर संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
आरटीआई के हवाले से वह बताते हैं कि केंद्र सरकार ने यह भी आदेश दिया कि इस रिपोर्ट की एक हार्ड तथा सॉफ्ट कापी जनपदों के जिला विकास अधिकारी को भी दी जाए जिससे वे कारगर उपाय कर सकें। आरटीआई एक्टिविस्टि अनिल सिंदूर बताते हैं कि वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन यूपी ने दो एजेंसियों को इस कार्य को सौंपा, जिसमें एक एडीसीसी इंफोकेड प्राइवेट लिमिटेड, नागपुर थी। एजेंसियों ने अपनी सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी प्रदेश के सभी जनपदों के मुख्य विकास अधिकारी को दी तथा सॉफ्ट कॉपी वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन को दी। इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 63 जनपदों में फ्लोराइड की मात्रा 3 पीपीएम तक पाई गई है, जबकि 25 जनपदों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम तक है।
क्या कहता है मानक ब्यूरो
भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार पीने के पानी में फ्लोराइड की वांछनीय मान्य सीमा 1.0 पीपीएम तथा अधिकतम मान्य सीमा 1.5 पीपीएम तथा आर्सेनिक की मान्य सीमा 0.01 पीपीएम तथा अधिकतम मान्य सीमा 0.05 पीपीएम है। वाटर एण्ड सेनिटेशन मिशन, यूपी ने आरटीआई में जानकारी दी है कि फ्लोराइड से प्रभावित जिलों में अधिकतम 3 पीपीएम तक है। पीने के पानी में मानक से अधिक फ्लोराइड से घातक रोग फ्लोरोसिस हो जाता है जो दन्त क्षरण, जोड़ों में अकड़न तथा हड्डियों में मुड़ाव ला देता है। इसी तरह पीने के पानी में मानक से अधिक 1 पीपीएम आर्सेनिक है, जो त्वचा रोग एवं कैंसर देता है। फ्लोराइड तथा आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों में नागरिकों पर पड़े प्रभावों तथा परिणामों का मूल्यांकन मिशन के स्तर से तो कराया ही नहीं गया स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस सर्वे रिपोर्ट पर कोई कार्य नहीं किया।
ज्यादा जलदोहन ने हालत खस्ता की सिंदूर बताते हैं कि आरटीआई से मिली जानकारी की सूचना रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को भेजी गई।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस सूचना को शिकायत मानते हुये मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर निस्तारण को प्रेषित कर दी, जबकि मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत को सन्दर्भ संख्या 6000190107115 दिया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय से भेजी गई शिकायत को तीन माह बाद बिना समझे, बिना पढ़े ही कानपुर नगर से निस्तारित कर दिया गया। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की 84 प्रतिशत आबादी को सुरक्षित नलों से घरों तक पानी उपलब्ध नहीं कराया जाता है। पीने का 90 प्रतिशत पानी हेंडपम्प या सबमर्शिबल के माध्यम से जमीन के अन्दर से ही लिया जाता है। अतिदोहन के चलते भूमिगत जलस्तर ख़त्म होने की कगार पर पहुंच गया है, जिसके परिणाम स्वरुप पानी में ऐसे तत्व आ रहे हैं जो मानक से अधिक हैं।
यहां के भूगर्भ जल में घुल रहा है जहर
आरटीआई में दी गयी जानकारी के हवाले से अनिल सिंदूर बताते हैं कि फ्लोराइड प्रभावित जिलों की सूची इस प्रकार है। आगरा, अलीगढ़, अम्बेडकर नगर, अमेठी, औरैया, बागपत, बहराइच, बलरामपुर, बाँदा, बाराबंकी, बिजनौर, बदायूं, बुलंद शहर, चन्दौली, चित्रकूट, एटा, इटावा, फैज़ाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, फ़िरोज़ाबाद, गौतम बुद्ध नगर, गाज़ियाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, हमीरपुर, हापुड़, हरदोई, जालौन, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर, कासगंज, कौशाम्बी, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, लखनऊ, महामायानगर, महाराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ, मिर्ज़ापुर, मुज़फ्फरनगर, प्रतापगढ़, रायबरेली, रामपुर, सहारनपुर, संभल, संतकबीर नगर, संतरविदास नगर, शाहजहाँपुर, शामली, श्राबस्ती, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, उन्नाव तथा वाराणसी। जबकि आर्सेनिक प्रभावित जिलों की सूची में अलीगढ़, आजमगढ़, बहराइच, बलिया, बाराबंकी, देवरिया, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, गोरखपुर, जौनपुर, झांसी, ज्योतिबाफुले नगर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर, पीलीभीत, संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर, सिद्धार्थ नगर, सीतापुर तथा उन्नाव जिले हैं। आर्सेनिक तथा फ्लोराइड दोनों से प्रभावित जिलों की सूची में ये जिले हैं, अलीगढ़, बहराइच, बाराबंकी, फैज़ाबाद, गाज़ीपुर, गोंडा, जौनपुर, झाँसी, ज्योतिबाफुलेनगर, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, महाराजगंज, मथुरा, मिर्ज़ापुर, संतकबीर नगर, शाहजहाँपुर, सीतापुर तथा उन्नाव।
दूषित पानी पीने से पांच लाख की मौत
द लसेंट पत्रिका के अनुसार अकेले 2019 में भारत में दूषित पानी पीने से पांच लाख से अधिक लोगों की जान गई थी। जबकि लाखों लोग बीमार पड़े थे। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसद से भी कम भारतीयों को स्वच्छ पेय जल मिल पाता है। क्योंकि यहां के भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा काफी ज्यादा है। सरकार के एक सर्वे में देश के 25 राज्यों के 209 प्रखंडों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई है। यह हृदय और फेफड़े के रोग को बढ़ाता है।
कहो खेत की सुनते खलिहान की
प्रधानमन्त्री कार्यालय को भेजी गई सूचना को शिकायत मानते हुए पीएमओ के अधिकारियों द्वारा यूपी के मुख्यमन्त्री पोर्टल पर डाल दी गई। मुख्यमन्त्री शिकायत पोर्टल पर बैठे अधिकारियों ने जब देखा यह शिकायत पानी को लेकर है तो उन्होंने नगर विकास मन्त्रालय की ओर भेज दी। नगर विकास मन्त्रालय के अधिकारियों ने उस सूचना / शिकायती पत्र को जब देखा कि पत्र भेजने वाला कानपुर शहर का है तो उन्होंने कानपुर नगर के ज़िलाधिकारी को भेज दिया और जैसे ही यह पत्र ज़िलाधिकारी कार्यालय के सम्बन्धित अधिकारी ने देखा कि यह पानी की समस्या का मामला है तो उन्होंने जल निगम को भेज दिया। कोई भी अधिकारी यह नहीं देख रहा है कि पत्र 63 जिलों की गम्भीर समस्या को लेकर है। जल निगम कानपुर ने जनाब में लिखा कानपुर को पीने के पानी की सप्लाई गंगा नदी से दी जाती है, इसलिए फ़्लोराइड आना संभव नहीं है जब सिन्दूर ने महाप्रबन्धक को लिखा कि समस्या भूगर्भ जल की है तब आप उस पत्र के बारे में बतायें न कि उसे निस्तारित कर दें। जब कि समस्या अपनी जगह खड़ी है तब उन्होंने लिखा कि दूरभाष द्वारा आपसे बात की जायेगी। एक सप्ताह बाद शिकायती पत्र को पोर्टल पर यह कह कर निस्तारित कर दिया गया कि शिकायतकर्ता के मोबाइल पर कॉल पिकअप नहीं की। सिंदूर कहते हैं कि कोई कॉल ही नहीं आई।
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