हरदोई, टोडरपुर दीपावली का त्योहार मिट्टी के दीये से जुड़ा है | यही हमारी संस्कृति में रचा बसा हुआ है | दीया जलाने की परंपरा वैदिक काल से रही है | भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी में यह त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाने की परंपरा चली आ रही है |
टोडरपुर विकास क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय फैजुल्लापुर में दीपावली का त्यौहार मनाया गया। विद्यालय के शिक्षक शिवेंद्र सिंह बघेल ने बताया कि इस बार बच्चों से एक दिया शिक्षा के नाम का जलवाया गया । यह दिया ना केवल अपने जीवन को रोशन करेगा अपितु चारों तरफ़ बाकियों के जीवन को भी रोशन करेगा। अगर हम शिक्षित रहेंगे तो समाज एक एक करके आगे बढ़ चलेगा।
इस मौके पर शिवेंद्र ने बोध वाक्य दिया कि-शिक्षा का दिया जलायेगें, स्कूल पढ़ने जायेगें। इस बोधवाक्य का मकसद कही न कही शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता फैलाना है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति सरकारी विद्यालयों में बच्चे अधिक से अधिक संख्या में पढ़ने आए। इसके साथ ही सभी विद्यालय के बच्चो को मुँह मीठा कराया गया , बच्चों ने मिट्टी के दिए जलाए, रंगोली बनाई पटाखे फोड़े और जमकर उल्लास-उमंग के साथ त्यौहार मनाया।
शास्त्रों में मिट्टी के बने दीये को पांच तत्वों का प्रतीक माना गया है | मगर, गुजरते वक्त के साथ इस त्योहार को मनाने का तरीका भी बदलता गया | आधुनिकता की आंधी में हम सबने अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे फोड़ने शुरू कर दिये | इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलानेवाले पटाखों को अपना कर अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया |