मंदिरों से अब रोजगार और अर्थव्यवस्था को ताकतवर बनाने का भी प्रसाद

राजेन्द्र कुमार गुप्ता

भाजपा इंडियन ओवरसीज कांग्रेेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के न्यूयार्क में राहुल गांधी की उपस्थिति के बीच विगत सप्ताह 5 जून 2023 को दिए उस बयान पर हमलावर हो उठी थी जिसमें उन्होंने देश में महगाई और रोजगार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि हर कोई राम हनुमान और मंदिर की बात करता नजर आता हैं, लेकिन मंदिर लोगों को रोजगार नहीं दे सकते। उन्होंने यही बात कोइर्् पांच वर्ष पहले 17 जुलाई 2018 के एक ट्वीट में कही थी। तब से अब तक भारतीय राजनीति में बहुत पानी बह चुका है और शायद सैम सर ही कि वहीं खड़े हैं। पिछली बार से इतर भाजपा का आई टी शैल ने इस बार उन पर तार्किक आंकड़ो के साथ वार किया और कहा कि कोरोना और यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण जब दुनिया की सारी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हांफ रही हें देश महंगाई हो या मुद्रास्फीति, पिछली जीडीपी हो या नई विकास दर की संभावनाए सबसे अधिक गतिशील अर्थव्यस्था बनकर उबर और उभर रहा है।
बहरहाल, सैम सर ने न्यूयार्क के प्रवासी भारतीयों के बीच जिन चुनौतियों को ढाल बनाकर मंदिरों पर निशाना साधा है और बात निकली है तो उस पर वैयक्तिक स्तर पर राजनीतिक कीचड़ उछालने की बजाए बिना लाग लपेट के पड़ताल होनी चाहिए और दूध का दूध पानी का पानी होना चाहिए कि क्या वाकई मंदिर मूल मुददों से ध्यान भटकाने का भाजपा का ब्रह्मास्त्र है या उनका कोई अर्थशास्त्र भी है।


जहां तक देश में मंदिरों की बात है, तो वे आमजन के लिए अर्चना, साधकों के लिए सत्संग, वास्तुशिल्पियोे के लिए कौशल और राजसत्ताओं के गौरव का विषय रहे हैं, लेकिनं संख्या की बात है, उसकी आधिकारिक गणना की शायद कभी नहीं हुई। फिर भी देश के 6 लाख 40 हजार गांवा,ें तकरीबन आठ हजार टाउन एरिया, चार हजार नगरपालिका और 23 नगर निगमों का हिसाब करें या फिर हर पांच सौ व्यक्ति पर दो मंदिरो का भी औसत रखें तो संख्या पच्चीस से तीस लाख के बीच बैठती हैं। उत्तर और दक्षिण के कुछ राज्यों के सरकारी आंकड़े इस संख्या को मजबूती प्रदान करते हैं। मसलन हिमाचल सरकार कहती कि इतने छोटे राज्यमें भी दो हजार से अधिक मंदिर हैं, तो तमिलनाडु का एचआरसीए बोर्ड राज्य में कम से कम पचास हजार और कर्नाटक का मंदिरों को सहायता देने वाला डेटा राज्य में तकरीबन 35 हजार मंदिरों की मौजूदगी का संकेत देता है।
यह सही है कि इसमें अस्सी फीसदी मंदिरों की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है। जिन मंदिरों के स्थापक उनके प्रबंधन के लिए जायदाद जोड़ गए हैं, बाकी के पुजारियों के लिए ये तो यह पुश्तैनी या पार्ट टाइम व्यवसाय है। यही कारण है कि अनेक राज्यों में जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक या असम में मंदिरों को सरकारी अनुदान और पुजारियों को वेतन भी दिया जाता है, जो चार से छह हजार रूपए महीने तक होता है। उत्तराखंड में भाजपा की पूर्व रावत सरकार ने ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की थी जिसे वहां के पुजारियों के विरोध के कारण धामी सरकार ने लागू नहीं किया।
लेकिन ए और बी श्रेणी बकाया बीस प्रतिशत ऐसे मंदिर भी हैं जो न केवल आर्थिक रूप से स्वयं मजबूत ह्ैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने का माद्दा रखते हैैं। महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर से भारी मात्रा में सोना चांदी लूटकर ले गया था के इतिहास के साथ यह जानना भी जरूरी है कि देश में इस समय भी 11 ऐसे मंदिर हैं जिऩके पास करोड़ो से अरबों तक की श्वेत संपत्ति है। इनमें दक्षिण के पद्मनाभ स्वामी मंदिर का नाम सबसे पहले आता है, जिसके पास 2 हजार करोड़ डालर का सोना और, जवाहरात है। बकाया दस में अंाध्र के तिरूमल वैंकटेश्वर और तिरूपति बालाजी, महाराष्ट् के मुंबई स्थितस सिद्धिविनायक और शिरड़ी स्थित साईंबाबा मंदिर, तमिलनाड़ु के मदुरै स्थित मीनाक्षी मंदिर, पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर, गुजरात के सोमनाथ मंदिर, दिल्ली के स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर, जम्मू का वैष्णव देवी मंदिर, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और उडीसा के जगन्नाथ पुरी, मंदिर का नाम आता है, जहां साल भर में न केवल आम से खास तक लाखों करोडों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, भारी मात्रा में चढावा या दान देते हैं।
अब आते हैं उन मंदिरों पर जो हमारे तीर्थों से जुडे हैं या उत्कृष्ट वैदिक वास्तुकला की धरोहर है ओैर जिसका हमारी अर्थव्यवस्था से सीधा सरोकार है। मोटे तौर पर हम चारों दिशाओं के धामों उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम मे द्वारिका,ं्र लेकिन इन धामों के साथ अनेक तीर्थ और मंदिर हैं। मसलन उत्तराखंड बदीनाथ धाम के साथ केदानाथ गंगोत्री, यमुनोत्री, हरद्वार रिषीकेश, कनखल सहित तीस अधिक तीर्थ, दक्षिण में रामेश्वरम के आसपास तमिलनाडु और केरल में कन्याकुमारी, मदुरै, त्रिचूर, तिरुवन्तपुरम सहित तीस अधिक तीर्थ। ऐसे ही आंध्रप्रदेश में मल्ल्किाअर्जुन श्रीशैलम के आसपास तीस से अधिक तीर्थ। ऐसे ही पश्चिम के द्वारिका धाम के निकट और सुदूर गुजरात, महाराष्टृ और राजस्थान में महाबलेश्वर, घृणेश्वर, भीमाशंकर, नासिक, शिरड़ी, अजंता, ऐलोरा, नाथद्वारा आदि पचास से अधिक तीर्थ। मध्य भारत में उज्जैन, मैहर, चित्रकूट, खजुराहो सहित पचास से अधिक तीर्थ। देश के सबसे बड़े उत्तर प्रदेश में अयोध्या मथुरा, काशी, प्रयाग, मथुरा, वृन्दावन, नैमिषारण्य और सारनाथ सहित डेढ दर्जन से अधिक तीर्थ और पूर्वी भारत में जगन्नाथ पुरीे और भुवनेश्वर, कोर्णाक के पूरब पंश्चिम बंगाल और पश्चिम बिहार में जनकपुर, देवधर, गंगासागर सहित दर्जनों तीर्थ और उत्तर पूर्व भी कामरूेप कामख्या सहित अनेन्क तीर्थो और धर्मस्थलों से संपन्न है। देवताओं के अनुसार वर्गीकरण करें देश में द्वादश ज्योर्तिलिंग और 51 शक्तिपीठ है।
हमारे इन तीर्थों कीे विशेषता यह है कि वे प्राकृतिक रूप से रमणीक स्थानों पर स्थित है। वे या तो हिमालय, अरावली, सतपुडा, विंध्याचल, नीलगिरि, गिरनार,ू शिवालिक बालाघाट और हिन्दकुश की पर्वतमालाओं पर स्थित हैं या फिर बंगाल की खाडी, हिंद़महासागर और अरब सागर के तटीय इलाकों में। मैदानी इलााकों में ये गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी, व्यास, कृष्णा, सतलज, चंबल और सोन नदी के किनारों पर। एक जमाना था कि दुर्गम और निर्जन रास्तों और आर्थिक तंगी के चलते केवल बुजुर्ग और समृद्ध लोग ही तीर्थयात्राएं करते थे। लेकिन जैसे-जैसे देश में दुर्गम से सुदुर अर्न्तवर्ती क्षेत्रों तक सडकों और रेलों का जाल बिछ और बढ़ रहा है, उम्र और व्यवसाय से परे तीर्थयात्रियों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। इसके चलते इन क्षेत्रों में ट्ृैवल और टूरिज्म इंडस्टृी का विस्तार हुआ है। धर्मशालाओं की जगह होटल-मोटल बऩ़़े हैं। बस और टैक्सी आपरेटर से लेकर हेली काप्टर बढ़े हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के लिए भी छह से नौ महीनों तक के रोजगार के अवसर बढ़े हैं, अर्थव्यस्था को धार मिली है।
पीपुल रिसर्च आ्न इंडियाज कंज्यूमर इकानमी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 तक देश में 41 प्रतिशत लोग अर्थात तकरीबन 58 करोड़ लोगों के मध्यमवर्ग अर्थात पांच से तीस लाख तक की आय के ब्रैकिट में होने का अनुमान है, जो दो अमेरिका की आबादी का दुगना है। यह हिस्सा 2005 में महज 14 प्रतिशत था। गौरतलब है वह मध्यम वर्ग ही है जो तीर्थाटन और पर्यटन पर जेबें खोलता है और जब जेब खुलती है तो रोजगार भी पैदा होते हैं और अर्थव्यवस्था को धार भी मिलती है। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में देशी तीर्थयात्रियों और विदेशी पर्यटकों ने एक सौ साढ़े चौंतीस लाख करोड का राजस्व पैदा किया था, जो कोरोना महामारी के पहले 2018 में 2 लाख करोड के आंकड़ेे को छूने को अधीर था। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2029 तक देश में तीर्थाटन और पर्यटन से तकरीबन पांच करोड़ 30 लाख रोजगार उत्पन्न होंगे जो कुल रोजगार और जीडीपी के नौ से दस प्रतिशत के बीच होगा और इसमें दो तिहाई योगदान देशी तीर्थाटकों-पर्यटकों का ही होगा।
मोदी सरकार की इस क्षेत्र से अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की नीति शुरू से दिखी है। वर्ष 2014-15 में सरकार ने इस क्षेत्र का दोहन करने के लिए डेढ़ हजार करोड़ की लागत से 45 हजार प्रसाद परियोजनाएं शुरू की थीं जिसके परिणाम 2018 में परिलक्षित होने लगे थे। सरकार ने अब इसी कड्ी में रेलवे की मदद से भारत गौरव यात्राएं प्रांरभ की तमिलनाडु के कोयंबटूर से शिरड़ी से शुरू हुई थी और अब तक विभिन्न क्षेत्रों में 26 ऐसी यात्राओं को पूरा कर चुकी हैं। पिछले अप्रैल में आरआरसीटीसी ने उड़ीसा के पुरी से होकर उत्तर प्रदेश के काशी, अयोध्या और बिहार के गया और गरुकृपा यात्रा के तहत लखनउ,पटना, नादेड, भटिंडा और कीरतपुर साहेब तक की यात्रा को संपन्न कराया था। सरकार तीर्थाटन के प्रति कितनी गंभीर है यह प्रधानमंत्री का अपनी विदेश यात्राओं के दौरान प्रवासी भारतीयों को संबोधन करते समय न केवल उन्हें बल्कि उस देश के गैर भारतीयों को भारत आने के लिए प्रेरित करने की अपील से भी नजर आता हैै। तीर्थाटन के साथ जिसका मंदिर अभिन्न अंग है, रोजगार के अवसरों के साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हमारे पक्ष में जो सबसे बड़ी बात है, वह यह कि हमें उसके लिए नया निवेश नहीं करना है। हमारे पास उनकी एक हजार वर्ष पुरानी धरोहर है। हमें तो केवल यातायात और प्रवास की व्यवस्था करनी है।
यह कहना सही नहीं होगा कि सैम सर कहीं से कम देश भक्त हैं लेकिन उनका यह कहना कि मंदिर रोजगार नहीं देते उनका यह माइंडसेट या तो वर्ष 2000 के आसपास की भारतीय अर्थव्यस्था पर केन्द्रित है,जब देश में मध्यम वर्ग बहुत छोटा हिस्सा था या फिर जब आजादी के बाद देश में गरीबी के चलते उस समय के युवाओं में साम्यवाद और समाजवाद के प्रति विशेष प्रकार का सम्मोहन और धर्म के प्रति उपेक्षा का भाव था या फिर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पार्टी के खांचे में कहने की विवशता। हालात बदले हैं, युवा मानस बदला है और मंदिर धार्मिक आंकाक्षाओं के साथ रोजगार और अर्थव्यवस्था को धार देने के लिए भी कमर कसते दिखाई पड़ते हैं।
(विश्लेषक न्यूज जंगल मीडिया के दिल्ली एनसीआर के विशेष संवाददाता हैं)

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