
वरिष्ठ पत्रकार : राजेंद्र गुप्ता

आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन और भारत के विदेश मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान से नई दिल्ली में विगत 17 से 19 मार्च के बीच त्रिदिवसीय रायसीना डायलाग के दसवे संस्करण का आयोजन किया गया। वैश्विक राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के हल ढूंढने के लक्ष्य 2016 में शुरू की गई इस पहल नेबहुत कम समय में ही एक खास मुकाम शामिल कर लिया है, बात अलग है कि मीडिया में वह चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक इसमें किए गए विमर्शो की उतनी चर्चा नहीं होती, जितना व्यापक इसका मूल्य और
महत्व है। हालांकि इसके पहले संस्करण का भारत की तत्कालीन विदेशमंत्री सुशमा स्वराज ने किया था,लेकिन इसकी कामयाबी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञोंऔर अलावा पूर्व और निवर्तमान राष्ट्राध्यक्ष भी शिरकत करते हैं। इस बार के संस्करण के ही मुख्य अतिथि
न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्जन थे।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया था और 131 देशों के राज नेताओं और 1500 से अधिक प्रतिभागियों ने इस त्रिदिवसीय सम्मेलन को गंभीरता प्रदान की। ओर आर एफ के आयोजन कालचक्र के तहत इस बार की विशयवस्तु पीपुल, पीस और प्लेनेट पर गहराई से व्यापक विमर्श किया था |
रायसीना डायलाग मे अन्तर्राष्ट्रीय रूचि का आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसी वर्ष जनवरी में ओआरएफ ने संयुक्त अरब अमीरात और भारत के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त तत्वावधान में अबूघाबी में रायसीना मिडिल ईस्ट का एक सम्मेलन आयोजित किया थाजिसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के अलावा लेबनान , ग्रीस, श्रीलंका , ट्युनिसिया ,मिस्र,अमेरिका , इटली, मलेशिया, कतर, और बहराइन के सरकारी और स्वंयसेवी संगठनो के विशेषज्ञों ने व्यापार, निवेश , तकनीकी उन्नयन और ग्रीन इनर्जी जैसे विषयों पर मंथन किया था।

संयोगवश वैश्विक राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था परक इस संवाद मंच का रायसीना उपसर्ग से बड़ा सटीक सरोकार है। दिल्ली की रायसीना हिल्स पर आज का राष्ट्रपति भवन और उसके आगे बाजुओं के रूप में जो नार्थ और साउथ ब्लाक स्थित हैं, जिसमें विभिन्न मंत्रालय और सचिवालय कार्य करते हैं, वह कभी ब्रिटिश इंडिया के वाइसराय का आवास और उनके मताहत काम करने वाले अफसरों का परिसर हुआ करता था अर्थात यह अपने प्रारंभ से सत्ता का पीठ रही है। इसका नक्शा 1912 में तैयार हुआ था और इसे बनने में 17 साल लगे थे। जिस लुटियन दिल्ली का कभी साफ्ट पावर के रूप में निरूपण किया जाता था और जिसे अब राजनीतिक तंज के तौर पर प्रयोग किया जाता है, उसके निर्माण में लुटियन साहब की बड़ी भूमिका थी। आजादी के बाद यह राष्टृपति भवन बन गया और सेंटृल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत अब साउथ ब्लाक के पीछे प्रधानमंत्री और नार्थ ब्लाक के पीछे पन्द्रह-पन्द्रह एकड़ भूमि उपराष्टृपति के आवास और कार्यालय निर्माण की योजना विचाराधीन है।

कहने का आशय रायसीना अपने जन्म से ही राजनीति और अर्थतंत्र का प्रतीक है। अब आते हैं इस बार के संस्करण की तो इसमें बीस देशों के विदेश मंत्रियों ने उनमें स्लोवेनिया के तांजा फेजान, लक्जमबर्ग के जेवियर बेतल, फिलीपींस के एनरिक मनालो, लिशजेनसतीन श्रीमती डामनिक हैसलर, लातविया की सुश्री बीबिया, ब्रेज, मालदोवा के मिहाई पोपसोय, जार्जिया की सुश्री माका बोतशोरिसविली, स्वीडन की सुश्री मारिया मालमेर स्टेन, स्लोवाक गणतंत्र के जुराज ब्लाना, नार्वे के स्पेन बार्थ ऐडी, यूक्रेन के एन्द्रिल सिबीहा, हंगरी के पीटर जिजरातो, मालदीव के अब्दुल्ला खलील, पेरू के एलमेर शियालेर, एंटीगुआ बर्बूडा के चेत ग्रीन, मारिशस के धनंजय रामफल, क्यूबा के एडुयार्डाे डियाज, घाना के सैमुअल अबलाकवा, भूटान के ल्योनपो धुग्येल और थाइलैंड के मारिस सांगियामपोंग्सा के नाम शामिल है। स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ट विमर्श में भाग लेने पहुंचे तो नैदरलैड ने अपने रक्षामंत्री रूबेन ब्रेकेलमांस को डायलाग में शामिल होने के लिए भेजा। अमेरिकी की नवनियुक्ति खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड की आइटीनेरिरी भी रायसीना डायलाग की तारीखों के हिसाब से बनाई गई।

मुखौटे के तौर पर यही लगता है कि सम्मेलन में विदेश मंत्रियों ने राजनय, आव्रजन, बदलते विश्व समीकरणों के बीच संवाद के नए बिन्दु तलाशने पर विमर्श हुआ होगा। लेकिन चूंकि इस बार की विषयवस्तु में पृथ्वी प्लेनेट की शांति की बात थी, तो लगता था कि रूस और यूक्रेन और गाजा को लेकर इजराइल और उसके पड़ोसी मुस्लिम देशों के बीच युद्ध विराम और शांति के प्रयासों पर विमर्श केन्द्रित होगा, लेकिन उससे ज्यादा तब्वजो आतंकवाद और आर्थिक प्रतिबंधों को औजार के तौर पर इस्तेमाल करनी बढ़ती प्रवृत्ति पर नकेल लगाने के उपायों की जरूरत पर भी बल दिया गया। विश्वपटल पर आतंकवाद की बात आती है तो पाकिस्तान का नाम सबसे पहले आता है, भले वह भस्मासुर की गति को प्राप्त होता नजर आ रहा हो। डायलाग के गलियारों में इसी विषय पर अजीत डोभाल और तुलसी गबार्ड के बीच तालमेल पर विमर्श हुआ।
समय और मंच का सबसे अच्छा प्रयोग विदेशमंत्री एस जयशंकर ने किया। जयशंकर जो पूर्व में कई बार यह कह चुके हैं कि पश्चिम के लिए केवल अपनी समस्याएं समस्याएं हैं, एक कदम आगे बढ़कर कहा कि उसके पूर्व की नीतियों और सयुक्त राष्टृ में उसकी दादागिरी के चलते कश्मीर में भारत के साथ बहुत अन्याय किया। पाकिस्तान आक्रांता था और भारत पीड़ित लेकिन दोनों को बराबरी खड़ा कर दिया, पूरा कश्मीर जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, विवाद का विषय बना दिया। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन कनाडा, बेल्जियम, आस्ट्ेलिया अैार अमेरिका जैसे देशों के दोहरे मानकों के कारण ही पाकिस्तान पिछले अस्सी साल से कश्मीर के एक हिस्से पर अवैध कब्जा जमाए हुए हैं। रोचक बात यह है कि जयशंकर रायसीना डायलाग के जिस सत्र में यह बात रख रहे थे, उसमें स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री बिल्ड, स्लोवाक और लिर्चेस्टीन के विदेशमत्री भी मंच पर असाीन थे। भारत के विदेशमंत्री ने संयुक्त राष्टृ संघ अनेक स्तर पर सुधार की आवाज उठाई।
रायसीन डायलाग की अच्छी बात यह रही कि इसमें भाग लेने आए विभिन्न देशों के मंत्रियों और राजयनिकों ने तीसरे दुनिया के इस सबसे बड़े विमर्श में हिस्सा लेने के अलावा साइड लाइन्स में भारत के साथ अपने सामरिक और आर्थिक हितों को भी आगे बढ़ाया। फिलीपींस यदि यदि चीन की विस्तारवादी नीति से उपजी सीमायी सुरक्षा के लिए मिसाइलें खरीदने की दिशा में आगे बढ़ा तो पेरू के विदेश मंत्री की उपस्थिति में भारत और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच परस्पर आर्थिक हितों को साधने के उपायों पर चर्चा हुई। वैसे तो न्यूजीलैंड द्वारा भारत में अपने शैक्षणिक संस्थानों के परिसर खोलने के समझौते चर्चा में रहे, लेकिन असल मुद्दा प्रशांत महासागर क्षेत्र में आस्ट्ेलिया से इतर दोनों के बीच समझ और सेतु का रहा। कुल मिलाकर टृंप के सत्ता में आने बाद अमेरिका टैरिफ पर सख्त और नाटो सहित विभिन्न देशों और स्वयंसेवी संगठनों में आर्थिक सहयोग से पीछे हट रहा है शेष दुनिया की भांति भारत के सामने भीे सप्लाई चेन को जो चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसके समाधान में भी रायसीना डायलाग के इस संस्करण के विमर्श समाधान की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।