- भाजपा ने छेड़ा महासंपर्क अभियान, अजय कपूर को कमान
- भाजपा प्रत्याशी रमेश अवस्थी के साथ वार्ड 7 की 4 बस्तियों के वोटरों से मिले
- 425 मलिन बस्तियों के साढ़े चार लाख वोटरों पर पकड़ को बनायी रणनीति बस्तियों की मतदाता सूची निकालकर वालंटियरों के नाम पते तलाशे।
महेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
कानपुर । सुनियोजित रणनीति के तहत बनाया गया चुनावी जीत का फार्मूला पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का कानपुर लोकसभा क्षेत्र में लगभग साढ़े चार लाख वोटों पर फिलहाल सपा–कांग्रेस, माकपा, आप की पैनी नजर नहीं पड़ी। इसके लिए रणनीतिकारों का मंथन जारी है। दूसरी तरफ गोविंदनगर और किदवईनगर विधानसभा क्षेत्र की मलिन बस्तियों भाजपा ने गुरुवार से सघन संपर्क अभियान शुरू कर दिया है। कमान पूर्व विधायक अजय कपूर ने संभाली है। अखिलेश यादव का जीत का फार्मूला पीडीए का अघिकतर वोट इन्हीं बस्तियों में है।
इन बस्तियों में राजनीतिक दलों की गतिविधियां अपेक्षाकृत बहुत कम है। हो सकता है कि चुनाव प्रचार तेज होने के बाद प्रत्याशी इनके पास जाएं। लेकिन वोट हासिल करने की जुगत में अपने नेता अखिलेश के इस फार्मूले पर महज बयानी अमल ही दिख रहा है। जहां तक शहर कांग्रेस की बात है तो वह इस वोट बैंक से कोसों दूर है। कोरोना के दौरान भाजपा यहां के वोटरों को लाभार्थी वोट बना चुकी है। बसपा का ग्राफ गिरने के साथ ही उसका बस्तियों में आधार काफी कम हुआ है।
पीडीए वोट का सपा के पक्ष में जाने के लिए घोसी के उपचुनाव का उदाहरण दिया जाता है जहां पर पिछड़ों और दलित वोट एक साथ दिखायी दिए थे। बसपा ने यहां प्रत्याशी नहीं लड़ाया था। कानपुर संसदीय क्षेत्र में बसपा का प्रत्याशी होने के कारण यह वोट तीन हिस्सों में बंटता दिखायी दे रहा है। सपा समर्थक जगदीश यादव का लोक विकास मंडल का यहां बड़ा नेटवर्क है। कुछ अन्य संस्थाएं ऊभी सक्रिय हैं। एकजुटता न होने का लाभ भाजपा उठा लेती थी। विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लाक का हिस्सा होने के बाद भी अखिलेश का यह फार्मूला अन्य राज्यों में भी आजमाया जा रहा है। यहां कानपुर महानगर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें गोविंदनगर विधानसभा क्षेत्र में 42 बड़ी मलिन बस्तियां हैं। इसमें छोटी बस्तियों की तो शुमार ही नहीं। किदवईनगर, छावनी, सीसामऊ और आर्यनगर में भी पुराने हाते और बस्तियों हैं।
इन मलिन बस्तियों की बसावट रेलवे, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, डिफेंस आदि सरकारी महकमों की जमीनों पर शुरू हुई थी। कानपुर में पहले सिंचाई विभाग के अधीन आने वाली नहरों का संजाल बिछा था। केनाल पटरी, पनकी से मोतीझील तक जाने वाली नहर, राजापुरवा, थाना काकादेव, छपेड़ा पुलिया वाली नहर, जुही नहरिया, पनकी, दादानगर से होते हुए पांडु तक की नहरिया प्रमुख थी। पनकी, दादानगर वाली नहरिया अभी भी है। जिनके किनारे-किनारे मलिन बस्ती बसती चली गयीं। बाकी नहरिया अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। इनकी जमीन पर ये बस्तायं बसी हैं। पनकी से मोतीझील वाली नहर पाट दी गयी है और उसके दोनों किनारों पर बस्ती बस चुकी है। इन बस्तियों में पिछड़ी जातियों, दलित और अल्पसंख्यकों की खासी संख्या है। मलिन बस्तियों में काम करने वाला प्रमुख संगठन लोक विकास मंडल के अध्यक्ष जगदीश यादव बताते हैं कि यहां तमाम योजनाओं के बाद भी लोग आर्थिक, शैक्षिक, भौतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। योजनाएं तो तमाम हैं पर सही क्रियान्वयन न होने से बहुतों को लाभ नहीं मिल पाता। पोलिटिकल पार्टियों को चुनाव के दौरान बस्ती वालों के सिर्फ वोटों से मतलब होता है। एक नैरेटिव बन गया है कि गिफ्ट दो दारू पिलाओ वोट हासिल करो। भूल जाओ। बस। ऐसा नहीं है। जागरूकता है। इनके लिए पहली योजना यूबीएसपी (अर्बन बेसिक सर्विसेज फॉर पुअर) 1989 में आयी थी। कुल 189 बस्तियों का चयन किया गया था।
प्रधानमंत्री ने शुरू की थी एनएसडीपी
कानपुर की मलिन बस्तियों की चर्चा राष्ट्रीयस्तर पर रही है। एचडी देवगौड़ा 1997 में अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कानपुर से एनएसडीपी (नेशनल स्लम डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट) शुर करने आए थे। वह खुद गोविंद नगर की रामआसरे नगर, महादेव नगर में बस्ती वालों से मिले थे। इनके उत्थान की कोशिश बीते कई चुनावों से जारी है। वादों की पिटारी दिखाकर नेता निकल जाते हैं। फिर चुनाव में मुंह दिखाते हैं।
सर्वेक्षण की आंख से मलिन बस्तियां
7 करोड़ रहते हैं बस्तियों में
भारत के शहरों में करीब सात करोड़ आबादी मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। हालांकि, इन बस्तियों में रहने वाले 90 फीसद लोग बिजली का इस्तेमाल करते हैं और दो तिहाई से ज्यादा के पास टीवी है। देश में अभी तक के अपनी तरह के पहले सर्वे में इसका खुलासा हुआ है।
जाति संख्या
दलित जातियां 40 फीसदी
पिछड़ी जातियां 28 फीसदी
अल्पसंख्यक वर्ग 05 फीसदी
बाकी सामान्य वर्ग के लोग रहते हैं।
साक्षरता एवं आयु वर्ग के लोग
निरक्षरता -64 फीसदी
साक्षरता(बेसिक) -35 फीसदी
स्नातक -3.5 फीसदी
आबादी आयु वर्ग के हिसाब से
0-5 वर्ष तक -16 फीसदी
5-18 वर्ष तक -30 फीसदी
18-35 वर्ष तक -28 फीसदी
36-60 वर्ष तक -21 फीसदी
वृद्धावस्था -05 फीसदी
मलिन बस्तियों में रोजगार की स्थिति
बेरोजगार -24 फीसदी
सरकारी नौकरी -20 फीसदी
प्राइवेट नौकरी -25 फीसदी
स्वरोजगार -39 फीसदी
आय -64 फीसदी (नौ हजार से ऊपर)
आवास कच्चे-पक्के व सुविधाएं
कच्चे घर -51 फीसदी
पक्के घर -21 फीसदी
निजी आवास -47 फीसदी
बस्तियों में पानी की व्यवस्था
सामुदायिक नलों से -55 फीसदी
घरों में नल लगा है -19 फीसदी
सामुदायिक शौच -32 फीसदी
खुले में शौच -10 फीसदी
1990 के दशक में योजनाएं
-राष्ट्रीय मलिन बस्ती विकास कार्यक्रम
-यूबीएसपी (शहरी गरीबों के लिए मूलभूत सेवा)
-स्वर्ण जयंती शहरी सेवा कार्यक्रम रोजगार योजना
-नेहरू रोजगारर योजना
-कांशीराम आवास योजना
-स्वामित्व के लिए पीएम आवास योजना
-स्मार्ट सिटी में नौ बस्तियों को शामिल किया गया ।
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