बीजेपी का संविधान बनाने वाली तीन सदस्यीय समिति में एक मुसलमान एक शरणार्थी था

महेश शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)

6 अप्रैल को बीजेपी जन्मी थी। यह बीजेपी का स्वर्णिम काल है। आजादी के बाद कांग्रेस की तूती बोलती थी ,अब बीजेपी की। बीजेपी ने कांग्रेस को कोसों पीछे छोड़ दिया। इमरजेंसी के बाद 1977 में गैर कांग्रेसवाद के नाम पर जनता पार्टी की सरकार न बनी होती तो पार्टी भारतीय जनसंघ ही रहती और कामयाबी यह दौर देखने को न मिलता। ये बीजेपी के पुरखों की राजनीतिक सूझबूझ का नतीजा है। जो परचम उन्होंने उठाया उसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ता शिखर तक ले गए। सरकार भले ही टीडीपी और जद (यू) की बैसाखियों पर टिकी हो पर हालिया राज्यों में हुए चुनाव दर्शाते हैं कि यह अस्थायी है। देश के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे होते जा रहे है जो 2029 में बीजेपी की आंधी के संकेत देते हैं। आधे से कहीं ज्यादा राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं।


वैचारिक धरातल पर मतभेद होते हुए भी बीजेपी के जन्म लेने की कहानी रोचक है। तभी तो ‘छह अप्रैल’ का दिन राजनीति के इतिहास में खास अहमियत रखता है। इसी दिन बीजेपी की बुनियाद पड़ी थी। इसकी कहानी भी कम रोचक नहीं है। बीजेपी के पुराने अवतार यानी भारतीय जनसंघ की बुनियाद डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आजादी के बाद ही 1951 में रख दी थी, जो आपातकाल के दौरान जनता पार्टी में तबदील हो गई। थोड़ा पीछे चलते हैं तो देखते हैं कि 18 जनवरी, 1977 को आपातकाल खत्म कर आम चुनाव का ऐलान कर दिया गया। सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर 23 जनवरी 1977 को जनसंघ, भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। 1977 में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। जनसंघ से जनता पार्टी में आए नेताओं की दोहरी सदस्यता अहम मुद्दा बना और उनपर आरएसएस से नाता तोड़ने का दबाव बढ़ा। हालांकि, जनता पार्टी के गठन के साथ तीन धड़ों में पार्टी बंटी हुई थी. पहला, मोरारजी देसाई, दूसरा, चौधरी चरण सिंह, राज नारायण और तीसरा धड़ा बाबू जगजीवन राम व जनसंघ नेताओं का था। समाजवादी नेताओं ने जनसंघ से आए नेताओं को खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। कहा जाता है कि जनसंघ के सांसद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी जुड़े थे। यह बात समाजवादियों को अखर रही थी। जेपी ने जब आंदोलन शुरू किया था तो उन्होंने जन संघ के नेताओं को इसी शर्त पर मंच पर बिठाया था कि वे आरएसएस की सदस्यता को पूरी तरह से छोड़ देंगे। उन्हें जनसंघ ने उन्हें इस बात के लिए आश्वस्त भी किया था। बाद वैचारिक जड़े मजबूत करने के लिए वे इस पर सहमत नहीं हुए। जनता पार्टी की कमान चंद्रशेखर के पास थी। 1978 में मधु लिमये ने दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठा दिया। बहस मुबाहिस में माहिर समाजवादियों नै कहा कि जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के लोग एक ही साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनता पार्टी के सदस्यता एक साथ नहीं रख सकते. किसी एक सदस्यता को छोड़नी पड़ेगी और यहीं से जनता पार्टी में गुटबाजी का वायरस घुसा। जिसके चलते मोरारजी सरकार के राजनारायन व चौधरी चरम सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। यूपी, बिहार और हरियाणा में रामनरेश यादव, कर्पूरी ठाकुर व देवीलाल जैसे दिग्गजों को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसी दौर में चौधरी चरण सिंह की किसानों की महारैली में उमड़ी भीड़ ने सरकार को हिलाकर रख दिया। जनता पार्टी का टूटना लगभग तय हो गया. वहीं, मोराराजी देसाई से बगावत कर 1979 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए थे। पर यह विवाद इतना गहरा होता गया कि 1980 के आम चुनाव में जनता पार्टी की हार के बाद पुराने जनसंघियों ने फैसला किया कि एक नई छवि वाली पार्टी बनाएंगे। हार जाने बाद जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें साफ था कि जनसंघ से आए नेताओं को आरएसएस सदस्यता छोड़ने की शर्त रखी गई। इस तरह से जनता पार्टी में आरएसएस से जुड़ाव को प्रतिबंधित कर दिया।


भारतीय जनसंघ से जुड़े हुए अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि नेताओं ने 6 अप्रैल, 1980 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भारतीय जनता पार्टी के नाम से नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया. बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में विजयराजे सिंधिया, नानाजी देशमुख, केआर मलकाणी, भैरों सिंह शेखावत और सिकंदर बख्त जैसे नेता शामिल रहे। कांग्रेस से आये सिकंदर बख्त को नयी पार्टी में तरजीह दी गयी। यही नहीं उन्हीं ने अटल बिहारी वाजपेयी को नयी पार्टी का नया अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे भैरोसिंह शेखायवत ने समर्थन दिया। भाजपा ने हाथी या चक्र चुनाव चिन्ह मांगा था। चुनाव आयोग ने कमल एलाट कर दिया। फिरोजशाह कोटला मैदान में जुटे तीन हजार प्रतिनिधियों में से नये नाम को लेकर कुछ छह लोग जनसंघ के ही नाम पर सहमत थे पर बाकी नया नाम चाहते थे। यही नहीं विचारधारा के नाम पर गांधीवादी समाजवाद अपनाने पर आम सहमति पर चर्चा का प्रतिनिधियों ने विरोध किया। और कहा कि नकलची क्यों बनें? यह विचारधारा वामपंथियों से मेल खाती है। फलस्वरूप इसे खारिज कर दिया गया। नयी पार्टी का संविधान बनाने वाली तीन सदस्यीय समिति में दो संघ से बाहर के थे। राम जेठामालानी सिंध से शरणार्थी के तौर पर आए थे और सिकंदर बख्त दिल्ली के मुसलमान थे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top