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आज के भारत में धर्मों का विस्तार

रोहित अवस्थी, अधिवक्ता
बीटेक(सीएस), साइबर लॉ डिप्लोमा, एलएलएम(क्रिमिनोलॉजी)

भारत के लिए धर्मांतरण हमेशा से एक बेहद गंभीर एवम संवेदनशील विषय रहा है, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से जबरन धर्मांतरण के मुद्दे से निपटने के लिये गंभीरतापूर्वक कदम उठाने को कहा है। धर्मांतरण का तात्पर्य किसी दूसरे धर्म के बहिष्कार के क्रम में किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय के विश्वासों को अपनाना है। इस प्रकार “धर्मांतरण” में किसी संप्रदाय को छोड़कर दूसरे के साथ जुड़ना शामिल होता है।

धर्मांतरण की आवश्यकता
महत्वपूर्ण प्रश्न ये है की ऐसी क्या परिस्थितियां है, जिन कारणों से धर्मों के ठेकेदारों को धर्मांतरण करवाने की आवश्यकता पड़ती है। क्या किसी धर्म के अनुयायी भारत में कम हो गए लगते है, जो बाकी धर्मों को मानने वालो पर डाका डाला जाता है। शायद वर्तमान परिवेश्य में नही किंतु ये समझने के लिए, हमे धर्मों के सिद्धांत हो जानना होगा व उनके इतिहास को समझना होगा। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार तो हिंदू जन्म से हिंदू होता है, वही इस्लाम एवम ईसाई धर्म विस्तारवाद की नीति पर चलते है। हिंदू धर्म ने धर्म के तौर पर कभी भी विस्तारवाद की नीति नही अपनाई। एक हिंदू परिवार विश्व के किसी भी कोने में वर्तमान काल में भी रहता हैं तो किसी आस पड़ोस के अन्य धर्म को मानने वाले से ये अपेक्षा नहीं करता की उक्त व्यक्ति हिंदू बन जाए। भारत में रहने वाला हिंदू तो कदापि नहीं। भारत में सभी धर्मो के लोग बारी आए और रह गए। ईसाई एवम इस्लाम आज भी अपनी विस्तारवाद नीति पर कार्यरत है। शायद यही कारण है, आजादी के 75वें वर्ष में सर्वोच्च न्यायालय को इस नीति पर लगाम लगाने की आवश्यक कार्यवाही करनी पड़ी है।

द व्हाइट मैन्स बर्डन
रुडयार्ड किपलिंग द्वारा वर्ष 1899 में एक कविता लिखी गई, जिसका शीर्षक था ‘द व्हाइट मैन्स बर्डन’ जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘श्वेत व्यक्ति का बोझ’। वो बोझ ये है, की श्वेत जाति नैतिक रूप से ग्रह पृथ्वी के गैर-श्वेत लोगों को सभ्य बनाने और उपनिवेशवाद के माध्यम से उनकी प्रगति (आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक) को प्रोत्साहित करने के लिए बाध्य है। 1947 में आजादी के उपरांत, यूरोप के साम्राज्यवादियों ने तो भारत को एक भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाई मानने से इनकार कर दिया था। अमेरिकी राजनीति विज्ञानी रॉबर्ट डल ने तो यहां तक कहा था कि भारत की स्थिति को देखते हुए यह कहना असंभव लगता है कि यह देश अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को आगे बढ़ा पाएगा। हालांकि इन तथ्यों का धर्म से कोई वास्ता नहीं था, किंतु इस सत्य को भी झुठलाया नही जा सकता की, इन्ही तथ्यों के आधार पर हिंदू धर्म को अप्रतिष्ठित किया गया, जिसका सीधा लाभ लेते हुए ईसाई धर्म ने अपनी विस्तारवाद की गाड़ी भारत में आजादी के बाद भी चारो दिशा में दौड़ाई।

इस्लाम और जंग
ये कहना आतिशोक्ति नही होगा की इस्लाम की उत्पत्ति ही जंग से हुई है और ये धर्म अपने जन्म से लड़ते हुए ही एकमात्र उद्देश्य पूरे विश्व को इस्लामिक बनाने की ओर आगे बढ़ रहा है। 613 में हजरत मुहम्मद ने जब, उपदेश देना शुरू किया था तब मक्का, मदिना सहित पूरे अरब में यहू‍दी, पेगन, मुशरिक, सबायन, ईसाई आदि धर्म थे। लोगों ने इस उपदेश का विरोध किया। विरोध करने वालों में यहूदी सबसे आगे थे। यहूदी नहीं चाहते थे कि उनके धर्म को बिगाड़ा जाए, बस यही से फसाद और युद्ध की शुरुआत हुई। हजरत मुहम्मद सल्ल. की वफात के मात्र सौ साल में इस्लाम समूचे अरब जगत का धर्म बन चुका था। 7वीं सदी की शुरुआत में इसने भारत, रशिया और अफ्रीका का रुख किया। 1096-99 में पहला क्रूसेड यानी धर्मयुद्ध, 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध। 11वीं शताब्दी से लगातार इस्लाम जंग पर जंग करता रहा और साथ में विस्तार करता रहा। 600 साल के बाद 17वीं शताब्दी में इस्लामिक सत्ता का पतन आरंभ हुआ और अंग्रेज़ो की सत्ता का समय आया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस्लामिकजंग का स्वरूप बदलता और आज इसने मक्का, मदीना और यरुशलम से निकलकर व्यापक रूप धारण कर लिया है। इस दौर में मुस्लिम युवाओं ने ओसामा के नेतृत्व में आतंक का पाठ पढ़ा। आज जहां पर भी इस्लाम पैर जमा चुका है वही विस्तार कर रहा है, जंग परोक्ष नही तो अपरोक्ष है किंतु लड़ना जारी है एवम उद्देश्य साफ हैं पूरे विश्व को इस्लामिक बनाना। यही कारण है की भारत में आज भी इस्लामिक बौद्धिक धर्मांतरण पर केंद्र बिंदु की तरह काम करते है।

गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है की –
धर्म यो बाधते धर्मो न स धर्मः कुधर्मक:।
अविरोधात्तु यो धर्म: स धर्मः सत्यविक्रम ।।
अर्थात , सत्यविक्रम ! जो धर्म एक दुसरे का बाधक हो , वह धर्म नही कुधर्म है ।

स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका प्रवास पर थे तो किसी ने उनसे कहा कि कृपया आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, महाशय मैं यहां हिंदू धर्म के प्रचार के लिए आया हूं, न कि धर्म-परिवर्तन के लिए। मैं अमेरिकी धर्म-प्रचारकों को यह संदेश देने आया हूं कि वे अपने धर्म-परिवर्तन के अभियान को सदैव के लिए बंद करके प्रत्येक धर्म के लोगों को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करें। इसी में हर धर्म की सार्थकता है। वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने को जाति-धर्म, गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है और उस ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया। ईसाई एवम इस्लाम दोनो को आज अपने अभियान को पूर्ण रूप से बंद करने में ही हम भारत के एक बेहतर भविष्य को देखते है।

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