नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर और बहराइच के अलावा आसपास के कई इलाकों में 1,000 से ज्यादा मदरसे चल रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ सालों में इन इलाकों में मदरसों की संख्या तेजी से बढ़ी है ।
News jungal desk :– उत्तर प्रदेश में करीब 80 मदरसों की 100 करोड़ की फंडिंग को लेकर विशेष जांच दल (एसआईटी) ने जांच शुरू कर दी है. इन मदरसों को पिछले दो साल में कई देशों से दान के तौर पर लगभग 100 करोड़ रुपये मिले थे । और वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एसआईटी अब उस मुख्य मदरसे की पहचान करने की कोशिश कर रही है । और जिसके तहत इन मदरसों द्वारा यह धनराशि खर्च की गई थी और क्या इसमें कोई अनियमितता थी ।
एसआईटी का नेतृत्व कर रहे एटीएस के अतिरिक्त महानिदेशक मोहित अग्रवाल ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में लगभग 24,000 मदरसे हैं, जिनमें से 16,500 से अधिक यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त हैं. हम इस बात की जांच करेंगे कि विदेशी फंडिंग से मिला पैसा कैसे खर्च किया गया है. संक्षेप में यह जांचना है कि क्या पैसे का इस्तेमाल मदरसा चलाने या किसी अन्य गतिविधियों के लिए किया जा रहा है?
अग्रवाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि जांच पूरी करने के लिए राज्य सरकार द्वारा अभी तक कोई समय सीमा नहीं बताई गई है. जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि एसआईटी पहले ही अपने बोर्ड से पंजीकृत मदरसों की डिटेल मांग चुकी है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले साल जिलाधिकारियों को गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था. दो महीने के सर्वेक्षण के दौरान, 8,449 मदरसे ऐसे पाए गए जो राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे.
नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर और बहराइच के अलावा आसपास के कई इलाकों में 1,000 से ज्यादा मदरसे चल रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ सालों में इन इलाकों में मदरसों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इसके अलावा इन मदरसों को विदेशी फंडिंग मिलने की भी जानकारी मिली थी. जिसके बाद एसआईटी का गठन किया गया. अल्पसंख्यक विभाग की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि कई मदरसों को विदेशी फंडिंग मिल रही थी.
हाल ही में एटीएस ने बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्याओं के अवैध प्रवेश में शामिल एक गिरोह के तीन सक्रिय सदस्यों को गिरफ्तार किया है. जांच में पता चला कि दिल्ली से संचालित एक एनजीओ के जरिए तीन साल में 20 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग मिली, जिसका इस्तेमाल उनकी मदद के लिए किया जा रहा था
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