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भारतीय कममुनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा के महासचिव कॉमरेड सीताराम येचुरी का निधन राजनीतिक क्षेत्र में हतप्रभ कर देने वाली खबर है। 72 साल की उम्र में उन्होंने एम्स में दम तोड़ा। अभी कोरोना में उन्होंने पुत्र को खोया था। मेरी उनकी दो संक्षिप्त मुलाकातें थी। उनमें वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ ही अपनी बात आसानी से समझने की कला भरपूर थी।
सीताराम येचुरी 19 अप्रैल 2015 से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो की केंद्रीय समिति के महासचिव हैं। राज्यसभा में संसद सदस्य के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल 2017 में समाप्त हुआ।
12 अगस्त 1952 को चेन्नई में जन्मे सीताराम येचुरी हैदराबाद में पले-बढ़े और दसवीं कक्षा तक ऑल सेंट्स हाई स्कूल में पढ़ाई की और बाद में 1969 के तेलंगाना आंदोलन के दौरान दिल्ली पहुंचे।
येचुरी ने दिल्ली के प्रेसिडेंट्स एस्टेट स्कूल में दाखिला लिया और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अर्थशास्त्र में एमए में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के लिए जेएनयू में दाखिला लिया, जिसे 1975 में ‘आपातकाल’ के दौरान उनकी गिरफ्तारी के साथ रद्द कर दिया गया।
1974 में येचुरी स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल हो गए और एक साल बाद वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई (एम)) में शामिल हो गए।
1970 के दशक में, येचुरी तीन बार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे, जिसका नेतृत्व स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) करता था। आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। वे प्रकाश करात के साथ मिलकर जेएनयू को वामपंथी गढ़ बनाने के लिए जाने जाते थे। 1984 में, वे सीपीआई(एम) की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए। येचुरी को संगठन में पूर्णकालिक सदस्य बनने में बहुत कम समय लगा। 1978 से 1998 तक वे व्यक्तिगत रूप से पार्टी में आगे बढ़ते रहे।
येचुरी को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो दक्षिणपंथी को सत्ता से बाहर रखने के लिए गठबंधन के लिए उत्सुक है। उन्होंने और पी चिदंबरम ने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार किया था। उन्होंने पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को सीपीआई (एम) का समर्थन दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत के दौरान, येचुरी ने राज्यसभा में वे सभी शर्तें सूचीबद्ध कीं जो सीपीएम ने समझौते के लिए अपेक्षित की थीं। मनमोहन सिंह सरकार द्वारा सभी शर्तें पूरी करने के बाद, प्रकाश करात ने उन्हें खारिज कर दिया, जिन्होंने दावा किया कि समझौता अभी भी सीपीएम के “स्वतंत्र विदेश नीति” के विचार का उल्लंघन करता है। ऐसा कहा जाता है कि येचुरी “नाराज और असहाय” महसूस कर रहे थे। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उनका जाना वामपंथी राजनीति में एक वैक्यूम उतपन्न कर गया। दक्षिणपंथी विचारधारा की चुनावी शिकस्त देने की कोशिशों के प्रयास में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती थी। देशकाल की राजनीतिक परिस्थितियों में विचारधारा के साथ ही मिलजुलकर विरोधी विचारधारा से मुकाबला के लिए मोर्चा के प्रति उदारवादी नजरिया उनके बूते की बात थी। एक समय संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में परमाणु समझौते के मामले में पार्टी की स्वतंत्र विदेश नीति की ओट में उनके अपनों ही आस्तीनें चढ़ा ली थी। उनके निधन से आयी रिक्तता कौन भरेगा? यह तो पार्टी तय करेगी पर ऐसा चेहरा चिन्हित करना आसान नहीं है।