किन्नर के शव को जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है,फिर करते है अंतिम संस्कार? जानें क्या है सच्चाई

हाल ही में सुष्मिता सेन की एक वेब सीरीज ‘ताली’ रिलीज हुई है. ‘ताली’ मूवी एक ट्रांसजेंडर श्रीगौरी के जीवन संघर्ष पर आधारित है. इस सीरीज में किन्नर समुदाय के जीवन को बहुत ही नजदीक से दिखाया गया है. किन्नर समाज हमारे समाज में शुरू से ही रहस्यभरा और उपेक्षित समाज रहा है.

News jungal desk : किन्नर या हिजड़ा transgender का नाम सुनते ही एक साड़ी पहने लाल बिन्दी लगाये , मांग में सिंदूर लगाए हुए चित्र आंखो में आ जाता है । ये ना तो पूर्ण पुरुष होता है और ना ही पूर्ण महिला. हमारे समाज में किन्नर को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है, उनके साथ अमानवीय व्यवहार होता है. हालांकि हमारे प्राचीन समाज में विभिन्न धर्म ग्रंथों के पन्नों को पलटा जाए तो किन्नरो का एक विशेष स्थान माना जाता है । उनमें किन्नरों की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण रही है. भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप को पूजा जाता है. महाभारत में तो खुद अर्जुन अज्ञातवास के दौरान किन्नर बनकर रहे थे. महाभारत के एक और पात्र शिखंडी की भूमिका को कौन भूला सकता है. खुद गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकांड में सभी देवी-देवताओं, तमाम जीव और प्रकृति के साथ किन्नरों की भी वंदना की है. –

देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्व।
बंदऊं किंनर रजनीचर कृपा करहु अब सर्ब।।

लेकिन किन्नर इतिहास के सुनहरे और सम्मानजनक माहौल से निकलकर वर्तमान में नारकीय जीवन जीने के मजबूर हैं.हालांकि, कुछ सामाजिक संगठनों और न्यायालय की पहल पर किन्नरों को थर्ड जेंडर का दर्जा मिला है. अब कुछ पढ़े-लिखे किन्नर अच्छे ओहदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. धार्मिक गतिविधियों की बात करें तो अब तो बकायदा किन्नरों के अखाड़े होते हैं, उनके महामंडलेश्वर होते हैं. कई किन्नर तो राजनीति में अच्छा मुकाम पा रहे हैं. 

किन्नरों का अन्तिम संस्कार
समाज का अहम हिस्सा होते हुए भी किन्नरों का जीवन अधिकतर लोगों के लिए रहस्य है. सबके बीच रहते हुए भी किन्नर सभी से काफी अलग होते हैं. उन्हें दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं होता. हर किन्नर सिर्फ अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त रहता है. समाज से उनका जुड़ाव सिर्फ बधाई लेने तक सीमित है. किन्नर खास मौकों पर लोगों के घर जाकर नाच-गाकर करके पैसा, अनाज और उपहार लेते हैं. कुछ घरों और दुकानों में उनका नियमित आना-जाना होता है .लोग किन्नरों के रहन-सहन, उनकी परम्पराओं को जानने व समझने का प्रयास करते हैं. लेकिन, सत्यता से उनका सामना नहीं हो पाता. वे चाहकर भी किन्नर की परम्पराओं से वाकिफ नहीं हो पाते.

किन्नरों के अंतिम संस्कार को लेकर भ्रांतियां-
– सबसे बड़ी भ्रान्ति है कि किन्नर की शवयात्रा कोई देख न पाए, इसलिए उसे आधी रात के बाद निकाला जाता है. आधी रात के बाद सभी अपने घरों में सो रहे होते हैं. इससे उनकी शवयात्रा कोई नहीं देख पाता.
– दूसरी भ्रान्ति है कि किन्नर शवयात्रा निकालते ही नहीं हैं बल्कि रात के अंधेरे में पार्थिव शरीर को किसी बोरी में भरकर एकान्त स्थान पर दफनाने या नदी में प्रवाहित करने के लिए ले जाते हैं. पार्थिव शरीर किन्नर का है उस पर किसी को शक न हो, उसके लिए अन्तिम यात्रा में शामिल व्यक्ति हँसते और बात करते हुए जाते हैं.
– तीसरी भ्रान्ति है कि अगर कोई आम इनसान मृतक किन्नर का चेहरा या उसकी शवयात्रा देख लेता है तो उसे दोबारा किन्नर के रूप में जन्म लेना पड़ता है. किन्नर के रूप में दोबारा कोई जन्म नहीं लेना चाहता. इसके लिए मृतक का अन्तिम संस्कार रात के अंधेरे में गुप्त रूप से किया जाता है, इसीलिए आज तक किन्नर की अन्तिम यात्रा कोई नहीं देख पाया.
– एक और भ्रान्ति है कि किन्नर की मृत्यु होने पर उसके शव को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है. किन्नर की मृत्यु पर उसके साथी शोक के बजाए खुशी मनाते हैं.

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