पिछले तीन दशक से प्रदूषण के महीन कणों के कारण दिल की बीमारी से होने वाली मौतों में 35 प्रतिशत वृद्ध हुई है ।
News Jungal Desk : प्रदूषण pollution के महीन कणों के कारण कार्डियोवैस्कुलर की बीमारी का खतरा बढता जा रहा है । एक शोध से पता चला है कि पिछले 20 वर्षो में प्रदूषण के कारण कार्डियोवैसिकुलर की बीमारियों के होने वाली बीमारियों में 35 प्रतिशत का इजाफा हुआ है । शोध से यह भी पता चला है कि होने वाली महिला और पुरुषों की सख्या समान नही है । इसमें होने वाली मौतें पुरुषों में 45 फीसदी तथा महिलाओं की 28.2 फीसदी की वृद्धि रिकार्ड की गई है ।ऑकडो के मुताबिक 1990 में जहाॅ पार्टीकुलेट मैटर के मुताबिक दिल की बीमारियों के चलते 26 लाख लोगों की मौत हुई थी,वहीं 2019 में मौतों का यह आंकड़ा बढ़कर 35लाख पर पहुॅच गया था । यह जानकारी अमेरिकन हार्ट एसोसिएसन के जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है । ध्यान रहे कि दिल की बीमारी कोई एक बीमारी नही है बल्कि ऐसे रोगों का एक समूह है जो ह्दय या रक्त वहिकाओं जैसे धमनियों और शिराओं को निशाना बनाते हैं । वही पार्टिकुलेट मैटर से तात्पर्य प्रदूषण के उन महीन कणों से है । जो आकार में बहुत छोटे होते है ,लेकिन स्वास्थ को बुरी तरह प्रभावित कर सकते है । यह अध्ययन तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकलसाइंसेज से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर 204 देशों के 1990 से 2019 के लिए जुटाए प्रदषण सेजुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है जिन्हें ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज अध्ययन के लिए एकत्र किया गया था । इन आंकड़ों की मदद से शोधकर्ताओं ने यह समझने का प्रयास किया है कि पार्टिकलु टे मैटर,स्वास्थ्य, मृत्यु और युवा विकलांगता सम्बन्धी जोखिम नतीजे सामने आए हैं, उनके अनुसार ऐसा नहीं है पार्टिकलु टे मैटर से होने वाली यह कार्यडियोवैस्कुलर बीमारियां केवल मौतों में ही इजाफा कर रही हैं,इनकी वजह से 1990 से 2019 के बीच दुनिया भर में विकलांगता में भी 31 फीसदी की वद्धिृ हुई है। यह 1990 में 68 लाख से बढ़कर 2019 में 89 लाख पर पहुंच गई है। शोध के मुताबिक आर्थिक परिस्थितियों ने भी इसे प्रभावित किया है।अध्ययन में जो चौंकाने वाली बात सामने आई वो यह थी कि जब शोधकर्ताओं ने लोगों की उम्र को ध्यान में रखा तो प्रदषण के इन कणों और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के चलते होने वाली मौतों में 37 फीसदी की गिरावट देखी गई।इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर फरशाद फरजादफर ने लिखा है, “मौतों में यह कमी एक अच्छा संकेत है। जो बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, प्रदषण को नियन्त्रित करने के उपायों और उपचार का उपलब्धता का संकेत देती है . इस बारे में शोधकर्ता फरजादफर का कहना है कि, “सॉलिड फ्यूल्स की वजह से घरों के भीतर होने वाले प्रदषण के प्रभावों में गिरावट के लिए परिष्कृत बायोमास, इथेनॉल, गैस, सौर ऊर्जा और बिजली जैसे स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों तक बेहतर पहुंच और उपयोग वजह हो सकते हैं।” वहीं बेहतर स्टोव और वेन्टीलेशन भी इसमें मददगार हो सकते है । प्रदषण के यह आंख, नाक या गले में जलन पैदा कर सकता है । यह आसानी सांस के जरिए फेफड़ो तक पहॅुच कर रक्त प्रवाह को रोक सकता है ।
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