रिटायर्ड आईपीएस लाल जी शुक्ला के मुताबिक बात अगस्त 1996 की है जब वे एसपी यमुनापार के पद पर कार्यरत थे. पहली बार लाल जी शुक्ला ने पुलिस बल के साथ अतीक अहमद को तत्कालीन एसएसपी रजनीकांत मिश्रा के निर्देश पर 9 अगस्त 1996 को गिरफ्तार किया था ।
News Jungal Desk: रिटायर्ड आईपीएस लाल जी शुक्ला के मुताबिक बात अगस्त 1996 की है जब वे एसपी यमुनापार के पद पर कार्यरत थे. उस दौरान एक नौजवान अशोक साहू की हत्या हुई थी. हत्या का आरोप अतीक अहमद के भाई अशरफ पर लगा था. अशोक साहू की हत्या मामूली बात पर हुई थी. सिविल लाइन इलाके में कार पार्किंग को लेकर अशोक साहू और अशरफ का झगड़ा हो गया था. अशोक साहू युवा था और उसने अशरफ को एक थप्पड़ रसीद कर दिया। लेकिन जब अशोक साहू को पता लगा कि अशरफ माफिया अतीक अहमद का भाई है तो वह अतीक अहमद के घर पर गया और उसने माफी भी मांग ली , लेकिन अतीक अहमद ने उसे माफ नहीं किया और अशरफ ने अपने साथियों के साथ मिलकर अशोक साहू की दिनदहाड़े हत्या कर दी. इस घटना की विवेचना में माफिया अतीक अहमद का नाम षड्यंत्र रचने और आरोपियों को बचाने में सामने आया था. इस मामले में पहली बार लाल जी शुक्ला ने पुलिस बल के साथ अतीक अहमद को तत्कालीन एसएसपी रजनीकांत मिश्रा के निर्देश पर 9 अगस्त 1996 को गिरफ्तार कर लिया था ।
माफिया अतीक अहमद के 44 साल के आतंक का अंत हो चुका है, लेकिन आज भी उसके आतंक के चर्चे हो रहे हैं. माफिया अतीक अहमद ने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा था और उसे ऐसा राजनीतिक संरक्षण मिला कि वह अपराध पर अपराध करता चला गया. उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर पाता था. अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के खिलाफ दर्ज मामलों में पुलिस या तो राजनीतिक दबाव के चलते कोई कार्रवाई नहीं करती थी या फिर गवाह ही अपने बयान से मुकर जाते थे. जिसके चलते माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ हर गुनाह कर बच जाया करते थे. लेकिन प्रयागराज में एक ऐसे पुलिस अफसर भी तैनात रहे, जिन्होंने एक बार नहीं बल्कि अतीक अहमद को तीन बार गिरफ्तार करने का काम किया था. हालांकि अब ये पुलिस के अधिकारी रिटायर हो चुके हैं. लेकिन उनके मुताबिक उन्हें कभी भी अतीक अहमद को गिरफ्तार करने में कोई डर नहीं लगा. यह पुलिस अधिकारी हैं रिटायर्ड आईपीएस और पुलिस मुख्यालय में आईजी स्थापना के पद से रिटायर लाल जी शुक्ला जिनका दावा है कि उनके गिरफ्तार करने के बावजूद अतीक अहमद की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह उन्हें धमका सके.
पार्षद अशफाक की हत्या में किया था गिरफ्तार
इसके बाद एक दूसरी घटना 1994 की है, जिसमें एक पार्षद अशफाक ऊर्फ कुन्नू की हत्या हुई थी. रिटायर्ड आईपीएस लालजी शुक्ला के मुताबिक यह पार्षद पहले अतीक अहमद का ही करीबी बताया जाता था. लेकिन बाद में अतीक अहमद से मनमुटाव होने के बाद उसे ठिकाने लगवा दिया था. इस मामले में भी विवेचना में अतीक अहमद का नाम आया था. हालांकि अतीक अहमद ने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए विवेचना सीबीसीआईडी को ट्रांसफर करवा दी थी ताकि वह इस मामले में बच सके. घटना के लगभग 7 साल बाद सीबीसीआईडी कानपुर शाखा के विवेचक ने यह पाया कि मामले में अतीक अहमद की संलिप्तता है. इस मामले में सीबीसीआईडी ने तत्कालीन एसएसपी पीके तिवारी से गिरफ्तारी के लिए अनुरोध किया. उस दौरान लालजी शुक्ला एसपी सिटी प्रयागराज के पद पर तैनात थे. उनके मुताबिक उस दिन धूमनगंज थाने का इंस्पेक्शन कर रहे थे और तत्कालीन एसएसपी पीके तिवारी का फोन आया. अतीक अहमद विधायक थे, उन्हें जानकारी मिली कि अतीक अहमद अपने चकिया स्थित कार्यालय में मौजूद था. एसपी सिटी लालजी शुक्ला ने धूमनगंज थाना इंस्पेक्टर को साथ लिया और कोतवाली इंस्पेक्टर राधेश्याम त्रिवेदी को भी मौके पर बुला लिया और विधायक रहते हुए दूसरी बार पार्षद हत्याकांड में अतीक अहमद को उन्होंने गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया. रिटायर्ड आईजी के मुताबिक किसी ने विरोध करने की हिम्मत तक नहीं कर पाया .
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