Navratri first day 2023: नवरात्रि के पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए संपूर्ण विधि और मंत्र
News jungal desk:– कल नवरात्रि का प्रथम दिन है हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ का विशेष महत्व माना गया है। वैसे ही मां दुर्गा शक्ति की साधना का भी महत्व हैं। मान्यता है कि जो जातक मां शक्ति की साधना करता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही सारी मनोकामना पूर्ण भी हो जाते हैं। नवरात्रि नव दिनों का त्योहार हैं। इसमें नव दिन तक व्रत रखा जाता है। साथ ही पूरे विधि-विधान से मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यदि आप इस साल पहली बार नवरात्रि व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको नवरात्रि से संबंधित कुछ नियमों को जान लेना चाहिए। तो आइए विस्तार से जानते हैं।
नवरात्रि व्रत से जुड़ी 5 विशेष जानकारियां
यदि आप भी नवरात्रि के नव दिनों तक व्रत रखना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको अपने तन और मन को पवित्र करना होगा। इसके बाद प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ व्रत का संकल्प लेना होगा।
हर व्यक्ति नवरात्रि (Navratri) के नव दिनों तक व्रत नहीं रख पाता है, तो आप अपनी सुविधा के अनुसार नवरात्रि के प्रथम दिन और आखिरी दिन व्रत कर सकते हैं। इसके साथ ही मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा एवं साधना कर सकते हैं।
आपको सबसे पहले नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन मां दुर्गा की साधना और व्रत का संकल्प लेना होगा इसके बाद कलश स्थापना करना होगा और मिट्टी में जौव डालना होगा।
जो जातक पहली बार व्रत कर रहे हैं, उनको घर के ईशान कोण, पूर्व या फिर उत्तर दिशा में बैठकर मां दुर्गा की साधना करनी चाहिए। साथ ही अपना चेहरा हमेशा पूर्व दिशा की ओर ही रखें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के समय किसी भी जातक को तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। खासकर जो जातक व्रत कर रहे हैं, उनको देवी साधना के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
मां शैलपुत्री की आरती:
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥
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