भारतीय शिक्षा प्रणाली : आज अगर मनुष्य जाति पृथ्वी पर शासन कर रही है, तो इसका मुख्य कारण यह है कि उसने समय के साथ परिवर्तन को स्वीकार किया और जीवन जीने के तरीकों को बदला। शिक्षा का मूल उद्देश्य यही है—पुरानी सीख को आधार बनाकर भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार करना और किसी भी सभ्यता को अधिक वैज्ञानिक और उन्नत बनाना।
शिक्षा प्रणाली की वर्तमान स्थिति
आज के दौर में जो राष्ट्र शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रहा है, वही अधिक प्रगति कर रहा है। अमेरिका, इज़राइल, चीन और यूरोप के कई देशों ने अपने एजुकेशन सिस्टम को सुधार कर विश्व में अपनी स्थिति मजबूत की है।(भारतीय शिक्षा प्रणाली)भारत भी इस सूची में आता है, लेकिन वर्तमान में भारतीय शिक्षा प्रणाली की स्थिति उतनी मजबूत नहीं दिखती।
जिस शिक्षा प्रणाली को कभी ‘ज्ञान का मंदिर’ कहा जाता था, वह आज केवल बच्चों को रट्टा लगाने और परीक्षा पास करने तक सीमित कर दी गई है। इसमें रचनात्मकता, तार्किक सोच और वास्तविक जीवन के ज्ञान का कोई स्थान नहीं है।
रटने की प्रवृत्ति और रचनात्मकता की कमी
आईआईटी और नीट जैसी परीक्षाओं में बच्चों को पुराने सवाल रटने की आदत डाल दी जाती है।(भारतीय शिक्षा प्रणाली) इससे उनकी तार्किक सोच और रचनात्मकता सिमटकर रह जाती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना बन चुका है, जिससे छात्रों की सोचने-समझने की क्षमता समाप्त हो रही है।
इसका परिणाम यह है कि हर साल लाखों इंजीनियर तो बनते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों की संख्या नगण्य है। छात्र केवल “कॉर्पोरेट मजदूर” बनकर रह जाते हैं, क्योंकि शुरुआत से ही उन्हें यह सिखाया जाता है कि जीवन का मुख्य उद्देश्य नौकरी पाकर सामान्य जीवन जीना है।
दूसरे देशों की शिक्षा प्रणाली से तुलना
दूसरे देशों की शिक्षा प्रणाली, जैसे कि इज़राइल और अमेरिका, रिसर्च पर आधारित है। वहां छात्रों को सोचने और खोज करने की आजादी दी जाती है। इसके विपरीत, भारत में रिसर्च का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पीएचडी का उद्देश्य भी केवल स्कॉलरशिप या वेतन अर्जित करना रह गया है, और इसका उपयोग वास्तविक रिसर्च के लिए नहीं किया जाता।
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भारत में शोध और अविष्कार की स्थिति चिंताजनक है। विश्व के टॉप 200 विश्वविद्यालयों में भारत का केवल एक संस्थान (IISc बैंगलोर) शामिल है। जिस देश ने प्राचीन काल में पूरे विश्व को शिक्षा का मार्ग दिखाया, उसकी यह स्थिति बेहद शर्मनाक है।
समाज और मानसिकता की समस्या
भारतीय समाज में शिक्षा का अर्थ केवल डॉक्टर, इंजीनियर, या कुछ गिने-चुने पेशे बनकर रह गया है। यदि कोई बच्चा कला, साहित्य, या खेल में रुचि दिखाता है, तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता। बच्चों पर समाज और परिवार का इतना दबाव होता है कि वे अपने सपनों की जगह दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसका असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है, और कई बार यह आत्महत्या जैसे गंभीर परिणामों का कारण बनता है।
रचनात्मकता और तार्किक सोच को बढ़ावा: छात्रों को रटने की बजाय कॉग्निटिव थिंकिंग की तरफ ले जाने की आवश्यकता है।
गुणवत्ता पर ध्यान: शिक्षा में मात्रा से अधिक गुणवत्ता पर फोकस करना जरूरी है।
अध्यापकों का प्रशिक्षण: वेल-ट्रेंड टीचर्स तैयार करने होंगे, जो छात्रों को सोचने और सृजनात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें।
रिसर्च आधारित शिक्षा: शिक्षा प्रणाली को रिसर्च और इनोवेशन आधारित बनाना होगा।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार की संभावनाएं अभी भी हैं। इसे पुनः वैज्ञानिक और व्यावहारिक बनाना जरूरी है, ताकि भविष्य में यह देश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सके।