उन्नाव : गरीब छात्रों के लिए नि:शुल्क सुविधा, बच्चों के लिए लगती है गुरुजी क्लासेस

आज अजय के इस सफरनामें के चार साल हो चुके हैं. मौजूदा समय में इस गुरूजी क्लाजेस से गांव के डेढ सौ से अधिक बच्चे पढाई करने नियमित रूप से आ रहे हैं. अजय के एक साथी दीपेंद्र भी कंधे से कंधा मिला कर इस काम में उनका साथ दे रहें हैं

News jungal desk :- कहते है कि विद्या से बड़ा कोई धन नहीं होता है और न ही इससे बड़ा कोई दान है । इसी अवधारणा पर अपना जीवन समर्पित करने की डगर पर निकल चुके हैं । शहर के ईदगाह मोहल्ला के रहने वाले अजय यादव जो स्वयं असोहा ब्लाक में एक विद्यालय में शिक्षक हैं । और उन्होंने शहर के सीमावर्ती गांव हुसैन नगर जो कभी जुएं के लिए विख्यात था वहां के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने का काम अपनी गुरूजी क्लासेज के जरिए किया है । और जहां पर वह गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं ।

अजय यादव बताते हैं कि पांच वर्ष पूर्व वह किसी काम से हुसैन नगर गांव पहुंचे थे । बता दें कि यह गांव एक समय जुएं की फड़ के लिए विख्यात था । और जगह जगह लगने वाली फड़ों जमा होने वाले जुआरियों के लिए गांव के छोटे छोटे बच्चे पानी, गुटखा व सिगरेट आदि लाने का काम किया करते थे । और जिसकी वजह होती थी बच्चों को इसकेएवज में मिलने वाले चंद पैसे । देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की यह दशा देख कर अजय विचलित हुए और उन्होंने गांव के बच्चों शिक्षा की अलख जगाने का निश्चय किया है ।

कहते हैं कि कुछ अच्छा करने का प्रण कर लिया जाए रास्ता खुद ब खुद बनता चला जाता है । और अजय यहीं पर एक भवन स्वामी से अपना विचार बताते हुए किराए पर उसका भवन लेने की इच्छा जाहिर की तो उसने सहर्ष अपनी सहमति जता दी थी । इसके बाद राह की दूसरी चुनौती थी बच्चों को पैसों के मोह से हटा कर अपनी गुरूजी क्लासेज तक लाना. इसके लिए अजय गांव में घर-घर जाकर वहां की महिलाओं से बात की. उन्हें भी अजय की बात समझ में आई और वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने लगी ।

आज अजय के इस सफरनामें के चार साल हो चुके हैं. मौजूदा समय में इस गुरूजी क्लाजेस से गांव के डेढ सौ से अधिक बच्चे पढाई करने नियमित रूप से आ रहे हैं. अजय के एक साथी दीपेंद्र भी कंधे से कंधा मिला कर इस काम में उनका साथ दे रहें हैं. अजय के मुताबिक उनकी कोचिंग में 40 फीसदी से अधिक बच्चे ऐसे हैं जिनके परिवारों की स्थिति दयनीय है लिहाजा उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. इतना ही नहीं ऐसे बच्चों की कॉपी-किताबों और स्टेशनरी की व्यवस्था भी उनकी तरफ से निःशुल्क कराई जाती है.

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