India Pakistan Partition Reason: आखिर क्या है भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की वजह?

14 अगस्त 1947,  दिल्ली के प्रिंसेस पार्क में तिरंगे को सलामी दी जाती है। इस दिन यह पल ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि दुनिया के लिए बेहद अहम था क्योंकि अब अंग्रेजों का शासन भारत से खत्म हो चुका  था और  अब यहाँ से भारत देश एक नई दिशा की ओर चलने वाला था।

14 अगस्त की शाम नेहरू अपने 17 योर करोड़ वाले घर पर इंदिरा गाँधी और पद्मजा नायडू के साथ बैठे हुए थे कि तभी एक फ़ोन बजता है। फ़ोन रखते ही नेहरू का चेहरा लाल पड़ गया था और उनकी  आंखें आंसुओं से भरी हुई थी।

सूरज की पहली किरण के साथ आजादी की पहली सुबह होती है, लेकिन ये कोई आम सुबह नहीं थी क्योंकि इस सुबह को पाने के लिए भारत के बहुत से वीरों ने खुद को कुर्बान कर दिया था।

दिल्ली से लाहौर के लिए पाकिस्तान की स्पेशल ट्रैन चलती है जिसमें पाकिस्तान जाने वाले सरकारी अफसर, कर्मचारी और उनके परिवार के लोग मौजूद होते हैं। उस दिन  ये ट्रैन दिल्ली से तो सही सलामत निकलती है लेकिन जैसे ही ये ट्रैन पटियाला पहुंचती है तो इस पर हमला हो जाता है।

1947 में भारत के बटवारे (India Pakistan Partition Reason) का दर्द सबसे ज्यादा महिलाओं ने झेला। अनुमान है कि इस दौरान पिचत्तरहजार  से एक लाख  महिलाओं का अपहरण, हत्या और बलात्कार के लिए हुआ था।  जबरन शादी गुलामी के ये जख्म सब बटवारे में औरतों के हिस्से में आए थे।

अंग्रेजों ने फूट डालो राज़ करो की नीती के तहत 1906 में मुस्लिम लीग को मान्यता दे दी। उस समय लीग के लगभग सभी सदस्य मुसलमानों के ऊंचे तबके से आते थे और इसी तरह 1915 में बनी हिंदू महासभा भी हिंदुओं के ऊंचे तबके की ही संपत्ति थी।

सीमा रेखा तय होने के बाद लगभग एक करोड़ 45 लाख  लोगों ने सीमा पार करके अपने नए देश में शरण ली। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के बाद 72लाख 26हजार  मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए और 72 लाख 49 हजार  हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आये।