समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि जब अपने हाथों से अमृत कलश लेकर निकले थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। इसलिए इस दिन को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है और इसकी कथा क्या है
News jungal desk: एकबार मृत्यु के देवता यमराज Yamraj ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं। फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है। तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया। एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया।
ज्योतिषाचार्यों ने की भविष्यवाणी
ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर बताया कि इस बालक की विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पसीज गया था। सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना पड़ेगा
यमराज ने बताया उपाय
यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके। तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।
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