सिर्फ बुजुर्ग को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी हो जाती है अर्थराइटिस की बीमारी. इस बीमारी का प्रभाव बच्चों की हड्डियों के विकास पर पड़ता है. इस बीमारी के कारण बच्चों की लंबाई रुक सकती है ।
News jungal desk : हर वर्ष 12 अक्टूबर को वर्ल्ड अर्थराइटिस डे ( World Arthritis Day) के रूप में मनाया जाता है । और इस दिन को मनाने के पीछे का मकसद लोगों के बीच जोड़ों को प्रभावित करने वाली गठिया बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना होता है । और अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में ये कहा जाता था कि यह केवल बुजुर्गों को होती है या फिर बढ़ती हुई उम्र के लोगों को होती है, जिनकी हड्डियां कमजोर हो जाती है । और ऐसा नहीं है, अर्थराइटिस बच्चों में भी होती है । वर्तमान के समय में अर्थराइटिस युवाओं को भी अपना शिकार बना रही है ।
बच्चों के अंदर इस बीमारी के क्या सिंपटम होते हैं । इस पर हमारी टीम ने जॉइंट एंड रिप्लेसमेंट सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर (वैशाली) के सीनियर ट्रांसप्लांट हेड डॉक्टर अखिलेश यादव से. जानकारी ली. डॉक्टर ने बताया कि जुवेनाइल इडियोपेथिक अर्थराइटिस जिसे जुवेनाइल गठिया भी कहा जाता है. ये एक ऑटोइम्यून बीमारी होती है. 16 साल की कम उम्र के बच्चों में होने वाला यह सबसे आम अर्थराइटिस है. जो बच्चे इस तरीके की परेशानी से पीड़ित होते हैं, उनमें जोड़ों में सूजन और लगातार दर्द बने रहने की शिकायत आम हो जाती है ।
दर्द को कम करने के तरीके
कुछ पेन मैनेजमेंट तकनीक से जुवेनाइल अर्थराइटिस से जुड़े हुए पुराने दर्द को काफी हद तक कम किया जा सकता है । और इन तकनीक में हिट एंड कोल्ड थेरेपी (Heat and Cold Therapy) भी शामिल है । और जो सूजन को कम करके और जोड़ों की परेशानी को कम करके अस्थाई राहत व्यक्ति को प्रदान करती है । और इसके साथ ही ब्रीदिंग टेक्निक भी है, जिसमें गहरी सांस लेना, ध्यान लगाना और दिमाग और शरीर को आराम देने वाली चीज मौजूद है . इस बीमारी में तनाव कम हो और दर्द की तरफ ध्यान न जाए, इसलिए अपनी हॉबी वाले काम में व्यस्त रहना जरूरी है ।
खानपान की सलाह
जुवेनाइल इडियोपेथिक अर्थराइटिस की बीमारी से पीड़ित बच्चों को विटामिन डी, प्रोटीन, स्वस्थ तेल और सीमित शकर्रा वाले फाइबर से भरपूर पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन करने की सलाह दी जाती है. जो उनके लिए बेहद जरूरी होती है. इसके अलावा अपनी दवाई का कोर्स बीच में नहीं छोड़ना चाहिए और समय से दवाई लेनी चाहिए बीमारी को और गंभीर रूप में ना पहुंचा पाए।